माझी लाडकी बहीण योजना: 26 लाख खाते संदिग्ध, फील्ड जांच में 3–4 लाख ही अपात्र; e-KYC अब अनिवार्य

मिर्ची समाचार

क्या है मामला: 26 लाख संदिग्ध, लेकिन फील्ड में तस्वीर अलग

इतना बड़ा आंकड़ा चौंकाने वाला है—महाराष्ट्र सरकार ने माझी लाडकी बहीण योजना के करीब 26 लाख लाभार्थियों को डेटा-आधारित प्रारंभिक जांच में संदिग्ध पाया, पर ज़मीनी सत्यापन के बाद तस्वीर बदल गई। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और जिला टीमों की घर-घर पड़ताल में पता चला कि इनमें से सिर्फ 3–4 लाख खाते ही वास्तव में अपात्र या फर्जी हैं। यानी भारी संख्या में लाभार्थी वाजिब हैं और उनका पैसा जल्द रीस्टोर होगा।

महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे के अनुसार, सूचना व प्रौद्योगिकी विभाग ने डेटा-मैचिंग में जिन खातों को ‘नॉन-एलीजेबल’ मार्क किया था, उन सबकी फील्ड जांच अब लगभग पूरी है। सरकार का कहना है कि जहां-जहां लाभार्थी पात्र पाए गए हैं, वहां रुकी हुई किस्तें और बकाया एक साथ खातों में क्रेडिट किए जाएंगे।

योजना का पैमाना बहुत बड़ा है—यह 21 से 65 वर्ष की उन महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये देती है जिनकी वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है और जो अन्य सरकारी नगद योजनाओं का लाभ नहीं ले रहीं। फिलहाल 2.25–2.30 करोड़ महिलाओं को भुगतान हो रहा है। इसके लिए राज्य को हर महीने करीब 3,800 करोड़ रुपये का प्रावधान करना पड़ता है, सालाना बोझ लगभग 45–46 हजार करोड़ तक पहुंचता है।

वेरिफिकेशन में कुछ साफ गड़बड़ियां भी मिलीं—2,289 सरकारी कर्मचारियों ने गलत तरीके से लाभ लिया, जिससे करीब 3.5 करोड़ रुपये की राशि गलत खातों में चली गई। इसके अलावा लगभग 14,000 पुरुष लाभार्थी भी सूची में पाए गए, जो साफ तौर पर पात्रता नियमों के खिलाफ है।

जांच कैसे हुई, कहां हुई चूक, आगे क्या बदलेगा

जांच कैसे हुई, कहां हुई चूक, आगे क्या बदलेगा

सवाल उठता है कि इतनी बड़ी संख्या संदिग्ध कैसे हो गई? जिलों से मिली जानकारी बताती है कि शुरुआती ‘फ्लैगिंग’ एल्गोरिदम-आधारित थी। कई मामलों में आधार-सीडिंग में त्रुटि, नाम/उपनाम की स्पेलिंग का फर्क, बैंक खाते निष्क्रिय होना, आय प्रमाणपत्र या वैवाहिक स्थिति अपडेट न होना, और दूसरे डेटाबेस से मिसमैच—इन वजहों से वैध लाभार्थी भी संदिग्ध दिखे। फील्ड टीमों ने दस्तावेज़ देखकर और पड़ताल कर इन्हें क्लियर किया।

सरकार ने अब पारदर्शिता और लीकेज रोकने के लिए सभी लाभार्थियों की e-KYC अनिवार्य कर दी है। समय-सीमा 18 सितंबर 2025 से शुरू होकर दो महीने की है। मतलब, इस अवधि में ऑथेंटिकेशन पूरा नहीं हुआ तो भुगतान रुक सकता है। जो अपना सत्यापन समय रहते कर देंगे, उन्हें भुगतान बिना बाधा मिलता रहेगा।

जिला प्रशासन के मुताबिक, जहां फर्जीवाड़ा साबित हुआ—जैसे सरकारी सेवा में होते हुए लाभ लेना, पुरुष लाभार्थी बनना, या आय सीमा छिपाना—वहां रिकॉर्ड अलग से टैग किए गए हैं। ये केस आगे विभागीय कार्रवाई के लिए चिन्हित किए गए हैं।

लाभार्थियों की सुविधा के लिए विभाग ने प्रक्रिया को सरल बताया है।

  • पात्रता: 21–65 वर्ष की महिला, परिवार की वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम, अन्य सरकारी नगद योजना की समवर्ती लाभार्थी नहीं।
  • दस्तावेज़: आधार सेड बैंक खाता, आय संबंधी प्रमाण, निवास प्रमाण, उम्र का दस्तावेज़।
  • e-KYC: आधिकारिक पोर्टल/सेवा केंद्र पर आधार-आधारित OTP या बायोमेट्रिक के जरिए ऑथेंटिकेशन।
  • अपडेट: नाम/स्पेलिंग, बैंक खाता स्थिति, वैवाहिक स्थिति और आय का रिकॉर्ड सही रखें—यही सबसे आम वजहें हैं जिनसे वैध लाभार्थी भी ‘फ्लैग’ हो गए थे।

आंगनवाड़ी नेटवर्क इस पूरी प्रक्रिया की रीढ़ है। उसी ने घर-घर जाकर दस्तावेज़ देखे, बैंकों/राजस्व रिकॉर्ड से मिलान कराया और सूची में सुधार कराया। जिलों में महिला एवं बाल विकास विभाग और आईटी सेल ने साथ बैठकर डुप्लिकेट/मिसमैच एंट्रियों को छांटा। नतीजा—26 लाख में से भारी हिस्सा क्लियर हो गया।

बजट का गणित भी समझना जरूरी है। जब हर महीने 3,800 करोड़ रुपये की डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) हो रही हो, तो 1–2% की त्रुटि भी करोड़ों में तब्दील हो जाती है। यही वजह है कि सरकार डेटा-क्लीनअप और e-KYC पर जोर दे रही है। प्रारंभिक एल्गोरिदमिक फिल्टर ‘ओवर-इन्क्लूसिव’ थे, लेकिन फील्ड जांच ने मानव-आधारित सुधार कर दिया।

कई जिलों ने बताया कि माइग्रेशन (स्थानांतरण) और बैंक खातों की निष्क्रियता बड़ी वजह रही। लोग नौकरी या शादी के कारण जिला/राज्य बदलते हैं, बैंक खाते बदलते हैं, पर रिकॉर्ड अपडेट नहीं होता। कुछ मामलों में एक ही व्यक्ति के नाम की अलग-अलग स्पेलिंग से अलग रिकॉर्ड बन गए। e-KYC के बाद ये समस्याएं काफी हद तक खत्म होनी चाहिए।

उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और विभागीय टीमों ने संकेत दिया है कि उद्देश्य दोतरफा है—अपात्रों को सख्ती से हटाना और पात्रों को बिना रुकावट पैसा पहुंचाना। सरकारी कर्मचारियों व पुरुषों के नाम पर मिली एंट्रियों ने सिस्टम की खामियां उजागर कीं, पर साथ ही यह भी दिखाया कि फील्ड-वेरीफिकेशन से गलती सुधर सकती है।

लाभार्थियों के लिए संदेश साफ है—e-KYC समय पर कराएं, दस्तावेज़ अपडेट रखें, और अगर आपका खाता ‘फ्लैग’ हुआ था लेकिन आप पात्र हैं, तो भुगतान की पुरानी किस्तें भी वापस मिलेंगी। विभाग ने कहा है कि सत्यापन पूरा होते ही रुका हुआ पैसा स्वत: क्रेडिट हो जाएगा।

अगले दो महीने सिस्टम की साख की असल परीक्षा हैं। अगर e-KYC कवरेज व्यापक रहा और डेटा-क्लीनअप नियमित रूप से हुआ, तो न सिर्फ लीकेज रुकेगा, बल्कि पात्र महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये समय पर मिलने की भरोसेमंदी भी बढ़ेगी—और अंततः यही इस योजना का मकसद है।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।

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माझी लाडकी बहीण योजना: 26 लाख खाते संदिग्ध, फील्ड जांच में 3–4 लाख ही अपात्र; e-KYC अब अनिवार्य

kannagi kalai

इतनी बड़ी संख्या में गलत फ्लैगिंग हो गई? अरे भाई, ये तो सिर्फ एल्गोरिदम की बेवकूफी है। आधार और बैंक डिटेल्स का मिसमैच होना तो आम बात है-खासकर गांवों में जहां लोग नाम बदल देते हैं या बैंक खाता बंद कर देते हैं। फील्ड टीम ने जो किया, वो असली इंसानी काम है। अब e-KYC अनिवार्य कर दिया गया है, तो अब तो बस इंतजार है कि कौन सी महिला अपना ऑथेंटिकेशन नहीं कर पाएगी।

Roy Roper

26 लाख फ्लैग और सिर्फ 3-4 लाख फर्जी तो ये तो बस बेकार का शोर है सरकार ने बस दिखावा किया है

Sandesh Gawade

ये जो बात हुई ये बहुत बड़ी बात है! आंगनवाड़ी वालियों ने घर-घर जाकर दस्तावेज़ चेक किए और 22 लाख लोगों को बचाया? ये तो असली बदलाव है! डिजिटल सिस्टम तो बस एक टूल है, असली ताकत तो वो है जो जमीन पर काम करती है! अब e-KYC का जोर देना बिल्कुल सही है-कोई भी अगर अपना डेटा अपडेट नहीं करेगा तो उसे दोषी मानो! ये योजना असली महिलाओं के लिए है, और उनकी आवाज़ अब तक दबाई गई थी। अब तो बस जागो और e-KYC कर लो! बिना बात के बैठे रहने से कुछ नहीं होगा!

MANOJ PAWAR

मैंने अपनी बहन के साथ इस पूरी कहानी को देखा। उसका बैंक खाता निष्क्रिय हो गया था क्योंकि वो शहर बदल गई थी। उसका नाम भी आधार पर गलत था-एक बार उसका नाम अमरजीत लिखा गया था, जबकि वो अमरजीत है। उसका खाता फ्लैग हो गया। उसने आंगनवाड़ी वाली के साथ जाकर दस्तावेज़ दिखाए, और दो हफ्ते में उसका पैसा वापस आ गया। ये जो लोग बोल रहे हैं कि ये सिर्फ एक शोर है, वो नहीं जानते कि एक महिला के लिए ये 1,500 रुपये कितना अहम है। ये पैसा बच्चों के लिए दूध है, दवाई है, बुक्स है। इस योजना का मतलब बस पैसा नहीं, इज्ज़त है।

Pooja Tyagi

अरे भाई! e-KYC अनिवार्य करना बिल्कुल सही है!! 😍 लेकिन ये बात भी समझो कि गांवों में जहां इंटरनेट भी अच्छा नहीं है, वहां लोगों को इसका आसान तरीका बताना होगा! आंगनवाड़ी वाली और स्थानीय सेवा केंद्रों को बहुत अधिक संसाधन दें! अगर आप एक महिला को बताएं कि वो अपना आधार और बैंक खाता लिंक करने के लिए कहां जाए, तो वो बिना किसी शिकायत के कर देगी! ये नहीं कि आप एक बटन दबाकर सब कुछ ठीक कर देना चाहते हैं! और हां, जिन लोगों ने गलत तरीके से लाभ लिया-उनके खिलाफ कार्रवाई करो! ये बस नहीं रहेगा कि जो नियम हैं, वो सिर्फ दूसरों के लिए हैं! 💪

Kulraj Pooni

ये सब बहुत अच्छा लगता है, लेकिन आपने कभी सोचा है कि ये सब डिजिटल वर्चुअलिटी क्यों बन रही है? जब तक आप इंसानों के जीवन को डेटा के रूप में नहीं देखेंगे, तब तक ये सब बस एक नाटक होगा। एक औरत जिसका आधार गलत है, उसकी जिंदगी उसके नाम की स्पेलिंग से नहीं, उसके दर्द से जुड़ी है। और आप उसे एक OTP भेजकर बचाना चाहते हैं? ये तो तकनीकी अहंकार है। अगर आप वाकई चाहते हैं कि ये योजना काम करे, तो डेटा की जगह दया लाएं। डिजिटल बनाने की जगह, इंसान बनाएं।

Hemant Saini

मुझे लगता है कि ये पूरी घटना एक बहुत बड़ा सबक है। हम सब डिजिटल टूल्स को बहुत ज्यादा भरोसा करते हैं, लेकिन जब एक इंसान अपने घर जाकर एक औरत के दस्तावेज़ देखता है, तो वो बहुत कुछ समझ जाता है। ये योजना सिर्फ पैसे देने के बारे में नहीं है-ये इंसानों को देखने के बारे में है। मैं आशा करता हूं कि अगली बार कोई भी योजना बनाते समय डेटा के साथ-साथ इंसानों के जीवन को भी शामिल करेगा। ये फील्ड टीम का काम बहुत बड़ा है। उन्हें सम्मान देना चाहिए।

Nabamita Das

e-KYC अनिवार्य करना सही है, लेकिन इसके लिए आपको लोगों को समझाना होगा-न कि डराना। जिन लोगों के पास आधार नहीं है, उन्हें उसे बनवाने में मदद करें। जिनके बैंक खाते बंद हैं, उन्हें नया खाता खोलने में गाइड करें। ये तो बस एक टेक्निकल प्रोसेस नहीं है-ये एक सामाजिक जिम्मेदारी है। अगर आप इसे सिर्फ एक नियम के तौर पर लेंगे, तो आपका सिस्टम बस और ज्यादा लोगों को बाहर धकेल देगा। हमें ये याद रखना होगा कि ये योजना गरीब महिलाओं के लिए है, न कि डेटा के लिए।

chirag chhatbar

ye sab kuchh bhai log kaam kar raha hai par kya tumhe pata hai ki kuchh log apne naam me koi aur ka aadhar lagate hai? toh ye kaise samajhoge? e-KYC toh bas ek aur badi problem banegi