बंबई हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र की ऑनलाइन टिकट शुल्क प्रतिबंध को गिरा दिया

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जब जस्टिस एम.एस. सोनाक, जज और जस्टिस जितेंद्र जैन, जज ने बंबई हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में अपना फैसला सुनाया, तो पूरे फिल्म‑उद्योग ने राहत की सांस ली। 2024‑09‑26 को जारी यह आदेश, महाराष्ट्र政府 द्वारा 2013‑2014 में जारी किए गए आदेशों को निरस्त कर, ऑनलाइन टिकेट बुकिंग पर कन्वीनियंस फ़ी लेनी की अनुमति पुनः दे रहा है। यह बदलाव न केवल पीवीआर लिमिटेड और बुकमायशो (बिग ट्री एंटरटेनमेंट प्रा. लि. की संचालन कंपनी) के लिये, बल्कि सभी निजी ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं के लिये जीत का संदेश है। अदालत ने यह कहा कि महाराष्ट्र सरकार के पास महाराष्ट्र एंटरटेनमेंट ड्यूटी एक्ट, 1923 के तहत ऐसे प्रतिबंध लगाने की कोई कानूनी शक्ति नहीं है, और यह कार्रवाई संविधान के धारा 19(1)(ग) के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में आती है।

पृष्ठभूमि: सरकार के आदेश और उनके प्रभाव

2013 में महाराष्ट्र सरकार ने एक कार्यकारी आदेश (G.O.) जारी किया, जिसमें मल्टीप्लेक्स और सिनेमा ऑपरेटरों को ऑनलाइन बुकिंग पर अतिरिक्त सेवा शुल्क लेने से रोका गया। 2014 में इसी तरह का आदेश फिर से जारी हुआ, साथ ही यह भी कहा गया कि थियेटर मालिकों को चार हफ्तों में अपना स्वयं का ऑनलाइन बुकिंग सिस्टम स्थापित करना अनिवार्य है, लेकिन बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के। इन आदेशों का मकसद था कि ग्राहक को ‘न्यायसंगत मूल्य’ मिले, पर उद्योग ने इसे अनुचित प्रतिबंध बताया।

यह प्रतिबंध मुख्य रूप से FICCI‑Multiplex Association of India और कई प्रमुख चेन सिनेमाघरों द्वारा चुनौती दिया गया। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन बुकिंग एक वैकल्पिक सुविधा है, जहाँ निवेश, तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर और रख‑रखाव का खर्च उठाना पड़ता है, और इस खर्च को कम कर देना असंगत है।

न्यायालय का निर्णय: मुख्य तर्क और कानूनी आधार

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र政府 ने अपने आदेशों में कोई वैध विधायी आधार नहीं दिया – अर्थात् 1923 के महाराष्ट्र एंटरटेनमेंट ड्यूटी एक्ट में ऑनलाइन सेवा शुल्क को ‘भुगतान शर्तों’ के रूप में शामिल करने की कोई प्रावधान नहीं थी। इसलिए, अदालत ने कहा, "यह आदेश अनुच्छेद 19(1)(ग) का स्पष्ट उल्लंघन करता है, जो किसी भी व्यक्ति को व्यवसाय, व्यापार या कामकाजी गतिविधि करने का अधिकार देता है।"

जस्टिस सोनाक ने कहा कि "यदि व्यापारियों को अपने व्यापार के विविध पहलुओं को निर्धारित करने की अनुमति नहीं दी गई, तो आर्थिक गतिविधि ठहर जाएगी।" वहीं जस्टिस जी.जे. जैन ने यह जोड़ते हुए कहा कि "ग्राहक को ऑनलाइन बुकिंग करने या थियेटर में जाकर टिकट खरीदने का विकल्प ही होना चाहिए।" अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि इस फैसले में यह नहीं तय किया गया कि इन सुविधाओं पर एंटरटेनमेंट ड्यूटी लगनी चाहिए या नहीं – यह भविष्य में अलग से तय होगा।

पार्स्परिक प्रतिक्रियाएँ: उद्योग, उपभोक्ता और सरकार

पीवीआर लिमिटेड के मुख्य विधिक सलाहकार नरेश थाकर ने आदेश के बाद कहा, "यह फैसला हमारे ग्राहकों को बेहतर सुविधा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है और हमारे निवेश को सार्थक बनाता है।" बुकमायशो के वकील रोहन राजाध्याख़षा ने यह कहा कि "इसी तरह के प्रतिबंध अन्य क्षेत्रों – जैसे IRCTC या मेक माय ट्रिप – में नहीं हैं, इसलिए यह असमानता को समाप्त करता है।"

सरकार की ओर से, महाराष्ट्र सरकार ने अभी तक आधिकारिक टिप्पणी नहीं की, पर बयान में कहा जा सकता है कि वे इस निर्णय को "सतर्कता से देखेंगे" और संभवतः नए नियामक ढांचे की तैयारी करेंगे। उपभोक्ता समूहों ने कहा कि अब वे विकल्प के आधार पर सेवा चुन सकते हैं, लेकिन साथ ही इससे टिकट की कुल कीमत में वृद्धि हो सकती है – इसलिए उन्हें कीमत‑पारदर्शिता की भी माँग है।

व्यापारिक प्रभाव और भविष्य की दिशा

अब सिनेमाघर ऑनलाइन बुकिंग प्लेटफ़ॉर्म को बिना डर के अतिरिक्त कन्वीनियंस फ़ी वसूल सकते हैं। इस से संभावित आय में 10‑15% तक वृद्धि हो सकती है, जैसा कि उद्योग विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है। साथ ही, छोटे थियेटर दूरदराज़ क्षेत्रों में भी डिजिटल सिस्टम अपनाने के लिये प्रोत्साहित होंगे, क्योंकि वे अब इस सेवा को सेवा‑शुल्क के साथ पेश कर सकते हैं।

एक लंबे समय से चल रहा प्रश्न यह है कि इस फ़ी पर राज्य को कोई एंटरटेनमेंट ड्यूटी देनी पड़ेगी या नहीं। अदालत ने इस मुद्दे को खुला छोड़ दिया, इसलिए अभी भी संभावित कर‑विवाद बना है। यदि अगले साल राज्य इस पर अतिरिक्त कर लगाता है, तो ऑनलाइन बुकिंग की कुल लागत बढ़ सकती है, जो उपभोक्ता के लिए नकारात्मक परिणाम हो सकता है।

आगे देखते हुए, उद्योग संघों ने कहा है कि वे राजधानी और मुख्य शहरी बाजारों में मूल्य‑नियंत्रण को लेकर सतर्क रहेंगे, और यदि भविष्य में नया नियम लागू होता है तो वह तुरंत चुनौती देंगे। इस बीच, टेक‑स्टार्टअप्स भी अपने प्लेटफ़ॉर्म में नई सुविधाएँ जोड़ने की योजना बना रहे हैं – जैसे कि लव सीट बुकिंग, तुरंत रीफ़ंड और वैकल्पिक भुगतान विकल्प – जिससे प्रतिस्पर्धा और भी तीव्र होगी।

इतिहासिक दृष्टिकोण: पूर्व के समान निर्णय

बंबई हाई कोर्ट ने पहले भी कई बार व्यापारिक अधिकारों की रक्षा में निर्णय दिया है – जैसे 2019 में ई‑बुकिंग टैक्स को असंवैधानिक घोषित करना। उन मामलों में भी न्यायालय ने कहा था कि सरकार को केवल तभी प्रतिबंध लगाना चाहिए जब उसके पास स्पष्ट विधायी अधिकार हो। वर्तमान फैसला उसी सिद्धांत पर आधारित है – यानी “कायदे‑हीन प्रतिबंध, मौलिक अधिकार का उल्लंघन।”

वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर 2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी ऑनलाइन शॉपिंग पर अतिरिक्त शुल्क को लेकर न्यायिक जांच का आदेश दिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत में डिजिटल सेवा शुल्क पर नियम बनाते समय राज्य को संविधान के अधिकार‑धारा का सम्मान करना अनिवार्य है। बंबई हाई कोर्ट का यह निर्णय, इस प्रवृत्ति को आगे बढ़ा रहा है, और डिजिटल अर्थव्यवस्था में नियमन की सीमा को स्पष्ट कर रहा है।

मुख्य तथ्य

  • निर्णय की तिथि: 26 सितंबर 2024
  • मुख्य जज: जस्टिस एम.एस. सोनाक और जस्टिस जितेंद्र जैन
  • पक्षकार: पीवीआर लिमिटेड, बुकमायशो, FICCI‑Multiplex Association of India
  • प्रमुख सरकारी आदेश: 2013‑2014 के दो कार्यकारी आदेश
  • संबंधित कानून: महाराष्ट्र एंटरटेनमेंट ड्यूटी एक्ट, 1923

अगले कदम

अदालत ने कहा है कि एंटरटेनमेंट ड्यूटी की उपस्थिति या अनुपस्थिति का मामला अब अलग से निपटा जाएगा। इसलिए, उद्योग को अब दो राहें देखनी होंगी – या तो राज्य के साथ कर‑समझौता करना, या फिर भविष्य में संभवतः उच्च न्यायालय में नई याचिका दायर करना। दोनों ही मामलों में, डिजिटल बुकिंग की सुविधा और उपभोक्ता‑सुरक्षा दोनों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण रहेगा।

Frequently Asked Questions

यह फैसला आम जनता को कैसे प्रभावित करेगा?

अब दर्शक ऑनलाइन बुकिंग के लिए अतिरिक्त सुविधा शुल्क दे सकते हैं, जिससे टिकट की कुल कीमत थोड़ी बढ़ सकती है। लेकिन साथ ही, डिजिटल बुकिंग की तेज़ी और सुविधा बनी रहेगी, क्योंकि सिनेमाघर अब इस सेवा को बिना सरकारी प्रतिबंध के पेश कर सकते हैं।

क्या राज्य अब एंटरटेनमेंट ड्यूटी लेगा?

अदालत ने इस प्रश्न को अलग रखा है, इसलिए अभी स्पष्ट नहीं है। भविष्य में वित्त विभाग नया नियम बना सकता है, लेकिन इसके लिये नई विधायी प्रक्रिया आवश्यक होगी।

पीवीआर और बुकमायशो ने इस फैसले से क्या उम्मीद की?

दोनों कंपनियों ने कहा कि यह निर्णय उनके डिजिटल निवेश को सुरक्षित करता है और भविष्य में बेहतर ग्राहक अनुभव देने में मदद करेगा। वे अब बिना किसी कानूनी बाधा के सुविधा शुल्क वसूल सकते हैं।

क्या इस फैसले से अन्य राज्य में भी समान निर्णय की उम्मीद है?

संभावना है। कई राज्य सरकारें भी ऑनलाइन सेवा शुल्क पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश कर रही थीं। बंबई हाई कोर्ट का यह उदाहरण अन्य प्रदेशों में समान याचिकाओं को प्रेरित कर सकता है।

भविष्य में डिजिटल बुकिंग के लिए क्या नई नीतियां बन सकती हैं?

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारें अब स्पष्ट कर‑निर्देश और उपभोक्ता‑सुरक्षा मानक बनाकर डिजिटल बुकिंग को और अधिक पारदर्शी बना सकती हैं। इसमें शुल्क‑डिस्क्लोजर, रिफंड‑नीति और डेटा‑प्राइवेसी शामिल हो सकते हैं।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।

Subhashree Das

सरकार ने फिर से व्यापारियों को असहाय बना दिया.

jitendra vishwakarma

अरे भाई, इस फैसले से प्लेटफ़ॉर्म्स को थोड़ी राहत तो मिली है, लेकिन क्या कीमतों में उछाल नहीं होगा? मैं तो कहूँगा, थोड़ा टैक्स हटाना अच्छा, फिर भी लोकल थियेटर को फालतू फ़ीस नहीं देना चाहिए. सबको बराबर अवसर चाहिए, नाहीँ तो उधमी लोग ही नहीं चल पाएंगे.

Ira Indeikina

यह निर्णय सिर्फ आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि मूल्यों की लड़ाई है।
जब न्यायालय ने कहा कि सरकारी प्रतिबंध असंवैधानिक है, तो यह संकेत देता है कि स्वतंत्र व्यापार का सम्मान होना चाहिए।
डिजिटल बुकिंग को फीस लेने की अनुमति से निवेशकों को उनका उचित रिटर्न मिलेगा।
सिनेमाघर अब आधुनिक तकनीक अपनाने में हिचकिचाहट नहीं करेंगे।
नए प्लेटफ़ॉर्म्स में प्रयुक्त इन्फ्रास्ट्रक्चर की लागत को कवर करना जरूरी है।
ऐसा नहीं कि हम उपभोक्ता को बेवकूफ़ बनाना चाहते हैं, पर एक संतुलित मॉडल चाहिए।
विभिन्न क्षेत्रों में इस फैसले का प्रभाव देखना रोचक होगा।
अगर अन्य राज्य इसी दिशा में कदम बढ़ाएँगे, तो राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिलेगी।
परंतु, कर और शुल्क के मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं; यह भविष्य की चुनौतियों में से एक है।
उद्योग को चाहिए कि वह इस नए परिदृश्य में पारदर्शी रहे और ग्राहकों को स्पष्ट जानकारी दे।
उपभोक्ता समिति को भी अपनी भूमिका निभाने की जरूरत है, ताकि अत्यधिक फीस से बचा जा सके।
यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायिक समीक्षा आर्थिक नीति को दिशा दे सकती है।
साथ ही, यह संकेत भी है कि विधायी प्रक्रिया को मजबूत करना आवश्यक है।
अंत में, हम उम्मीद करते हैं कि यह फैसला डिजिटल सेवाओं के विस्तार को तेज़ करेगा, बिना अनावश्यक बाधाओं के।

Shashikiran R

उपरोक्त विश्लेशण सही है, परन्तु हमें यह याद रख्णा चाहिये कि क़ानून की पवित्रता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सरकारी आदेश को चुपचाप नज़रअंदाज़ करनाआइऩातमक है। व्यावसायिक स्वातन्त्र्य का मतलब यह नहीं कि हम समाजिक जिमेदारियों से बच सकें। एकजुटता से काम लेना चाहिए, न कि अंधाधुंध आरोप लगनाआ।

SURAJ ASHISH

बात समझनी चाहिए पर इस केस में बहुत ज्यादाचिंता है

PARVINDER DHILLON

सभी दृष्टिकोणों को समझना जरूरी है 😊 हम सब मिलकर एक संतुलित समाधान की ओर बढ़ सकते हैं। फीस की पारदर्शिता और उपभोक्ता सुरक्षा दोनों को ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ना चाहिए।

Nilanjan Banerjee

वास्तव में यह निर्णय न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक प्रगति का प्रतीक है। यदि हम इस पथ पर अडिग रहते हैं, तो भविष्य में डिजिटल अनुभव का स्तर नई ऊँचाइयों को छू सकता है, और कला व दर्शक के बीच का अंतराल कम हो सकता है।