अंतिम नवंबर 2025 में भारतीय सोशल मीडिया पर फैलने वाला एक 19 मिनट 34 सेकंड का वीडियो, अब हरियाणा पुलिस के साइबर सेल द्वारा एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा बनाया गया डीपफेक पाया गया है। इस वीडियो में किसी वास्तविक घटना का कोई सबूत नहीं है — फिर भी इसने हजारों लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को तोड़ दिया, कई अनजान लोगों की जिंदगी बर्बाद कर दी, और ऑनलाइन अपराध के नए रूप को उजागर किया। जब लोग इसे देखने लगे, तो उन्हें लगा कि यह किसी वास्तविक व्यक्ति की अनुमति के बिना बनाया गया शैतानी सामग्री है। लेकिन वास्तविकता और कल्पना के बीच का फर्क अब बहुत पतला हो चुका है।
कैसे फैला यह डीपफेक वायरल वीडियो?
वीडियो अचानक ट्विटर, रेडिट और व्हाट्सएप ग्रुप्स में फैला। इसके शुरुआती व्यूज 1.2 मिलियन से बढ़कर 18 मिलियन हो गए। लोगों ने इसे एक ‘रियल लाइफ मीम’ के रूप में शेयर किया, बिना किसी सत्यापन के। पर जब एक युवक, सोफिक, ने अपने दोस्त के द्वारा उसकी पुरानी व्यक्तिगत फुटेज को चोरी करके इस वीडियो में डाले जाने की शिकायत की, तो बात गंभीर हो गई। उसकी साथी, सोनाली, ने कहा — ‘मैं इतनी तनावग्रस्त हो गई कि मैंने आत्महत्या के बारे में सोचा।’ उसके साथ ही, मेघालय की प्रभावशाली इन्फ्लुएंसर स्वीट जन्नत को गलत तरीके से वीडियो में शामिल दिखाया गया, जिसके बाद उनके कमेंट सेक्शन में हजारों घृणित टिप्पणियाँ आईं।
मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर
कानपुर के Regency Health के मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. रोहन ने स्पष्ट किया — ‘ऐसे वीडियो को बार-बार देखना मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक चेतावनी का संकेत है।’ उनके अनुसार, ऐसी सामग्री व्यक्ति की सहमति, सीमाओं और संबंधों को समझने की क्षमता को बदल देती है। रोजाना इसे देखने वाले लोगों में चिंता, अनियंत्रित विचार, ध्यान न लगना और भावनात्मक अस्थिरता की शिकायतें बढ़ रही हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया कि दो अलग-अलग युवकों ने अपने घर में वीडियो देखने के बाद अपनी पत्नी से लड़ाई कर ली, क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी पत्नी भी इसी तरह की सामग्री देखती है। यह बदलाव सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी हो रहा है।
साइबर पुलिस की जांच: कोई वास्तविक घटना नहीं
हरियाणा पुलिस साइबर सेल के अधिकारी अमित यादव ने स्पष्ट किया — ‘इस वीडियो में कोई वास्तविक व्यक्ति नहीं है। यह सभी AI द्वारा बनाई गई छवियों और आवाज़ों का मिश्रण है।’ उन्होंने बताया कि शुरुआती वीडियो के बाद ‘सीजन 2, सीजन 3’ के नाम से और भी डीपफेक वीडियो बन रहे हैं, जिनमें अलग-अलग चेहरे और बॉडी टाइप्स का इस्तेमाल किया गया है। एक ‘40 मिनट का वीडियो’ भी ट्रेंड हुआ, जिसे अधिकारियों ने झूठा बताया। यह सब एक जानबूझकर बनाई गई ‘अनिश्चितता की बाजारी’ है — जहाँ लोगों को डर दिखाकर उन्हें क्लिक करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
कानूनी परिणाम: शेयर करना भी अपराध है
हरियाणा पुलिस ने स्पष्ट किया है कि इस वीडियो को देखना, सेव करना या शेयर करना भारतीय दंड संहिता की धारा 67, 67A और 66 के तहत अपराध है। इसकी सजा तीन साल की जेल या दो लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकती है। लेकिन अधिकांश लोग इसके बारे में अनजान हैं। एक युवक ने बताया — ‘मैंने तो सिर्फ एक बार शेयर किया था, सोचा यह तो बस एक फनी वीडियो है।’ उसके खिलाफ अभी जांच चल रही है।
डिजिटल अपराध का नया रूप: फिशिंग और मैलवेयर का खेल
इस वीडियो के साथ जुड़े लिंक्स अक्सर फिशिंग वेबसाइट्स पर ले जाते हैं। एक यूजर ने बताया कि उसने वीडियो के लिंक पर क्लिक किया, तो उसका फोन एक ऐप डाउनलोड करने के लिए मजबूर हो गया — जिसने उसके बैंक डिटेल्स चोरी कर लिए। अन्य लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट्स हैक हो गए। यह सब एक अच्छी तरह से ऑर्गनाइज्ड ऑनलाइन फ्रॉड नेटवर्क का हिस्सा है, जो ‘वायरल ट्रेंड’ का फायदा उठा रहा है।
अगला कदम: क्या होगा अब?
हरियाणा पुलिस ने अब तक 17 शिकायतें दर्ज की हैं — जिनमें 12 ब्लैकमेलिंग के मामले शामिल हैं। अभी तक तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिन्हें वीडियो के वितरण में शामिल होने का आरोप है। Regency Health ने अपने मरीजों को एक निर्देश जारी किया है — अगर कोई व्यक्ति इस वीडियो को छोड़ नहीं पा रहा, या उससे डर रहा है, तो तुरंत मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करे।
क्या यह सिर्फ एक वीडियो का मामला है?
नहीं। यह भारत के डिजिटल अनुशासन के बारे में एक बड़ा सवाल है। हमने अपने फोन्स पर ऐसी सामग्री को अनियंत्रित रूप से शेयर करना शुरू कर दिया है — बिना सोचे, बिना जांचे। और अब यह वीडियो हमें याद दिला रहा है कि जब तक हम डिजिटल दुनिया में अपनी सहमति, गोपनीयता और इंसानियत की रक्षा नहीं करेंगे, तब तक ऐसे अपराध और भी बढ़ेंगे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस वीडियो को देखने से मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है?
डॉ. रोहन के अनुसार, बार-बार ऐसे वीडियो देखने से व्यक्ति की सहमति की समझ, भावनात्मक सीमाओं और संबंधों को समझने की क्षमता नष्ट हो सकती है। अध्ययनों में देखा गया है कि ऐसे वीडियो देखने वाले लोगों में चिंता, अनियंत्रित विचार और नींद में खलल आने की समस्या 3.2 गुना अधिक होती है।
क्या वीडियो शेयर करना गैरकानूनी है, अगर मैं जानता नहीं था कि यह डीपफेक है?
हाँ। कानून के अनुसार, वीडियो के असली होने की जानकारी का होना या न होना मामले को बदल नहीं देता। भारतीय दंड संहिता की धारा 67A के तहत, कोई भी अनुमति के बिना ऐसी सामग्री शेयर करने पर दोषी पाया जा सकता है। अधिकारी इसे अज्ञानता के नाम पर माफ नहीं करते।
क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस पर कोई कार्रवाई कर रहे हैं?
हाँ। ट्विटर और फेसबुक ने इस वीडियो के लिए अलग-अलग कीवर्ड्स को ब्लॉक कर दिया है। लेकिन अभी तक उन्होंने किसी भी वीडियो को हटाने के लिए AI डिटेक्शन टूल्स का उपयोग नहीं किया है। यह एक बड़ी कमी है — क्योंकि अधिकांश वीडियो अभी भी रिप्लाई और रीट्वीट्स के जरिए फैल रहे हैं।
अगर किसी ने मुझे इस वीडियो में शामिल दिखाया है, तो मैं क्या करूँ?
तुरंत हरियाणा पुलिस साइबर सेल को सूचित करें। साथ ही, अपने व्यक्तिगत फोटो, वीडियो और ऑडियो की डिजिटल नकल बनाने के लिए एक फोटो गैलरी और ऑडियो फाइल्स की लिस्ट बना लें। यह आपके मामले को साबित करने में मदद करेगी। कई मामलों में ऐसी सामग्री को बनाने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
क्या यह वीडियो बनाने वाले लोगों को पकड़ा जा सकता है?
हाँ। हरियाणा पुलिस ने वीडियो के डिजिटल फुटप्रिंट्स का विश्लेषण किया है — जिसमें AI टूल्स के यूजर आईडी, डिवाइस इंफो और इंटरनेट आईपी एड्रेस शामिल हैं। इन डेटा के आधार पर अभी तक दो लोगों की पहचान हो चुकी है, और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू हो चुकी है।
क्या यह घटना भारत में ऐसी पहली बार हुई है?
नहीं। 2023 में बिहार में एक शिक्षिका के खिलाफ AI डीपफेक वीडियो फैला था, जिसके बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली। 2024 में तेलंगाना में एक युवती के खिलाफ भी ऐसा ही मामला दर्ज हुआ। लेकिन इस बार का अंतर यह है कि इसका दायरा अब राष्ट्रीय स्तर पर है — और इसने लाखों लोगों को असर डाला है।
Senthil Kumar
ये वीडियो शेयर करने वालों को जेल जाना चाहिए। सोचे बिना शेयर करना अब बहुत खतरनाक हो गया है।