उदयनिधि स्टालिन ने संस्कृत को 'मृत भाषा' कहा, भाजपा ने उठाई तीखी आपत्ति

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जब उदयनिधि स्टालिन ने 22 नवंबर 2024 को चेन्नई में एक पुस्तक विमोचन समारोह में संस्कृत को ‘मृत भाषा’ कहा, तो वह बस एक शब्द बोल रहे थे — लेकिन उस शब्द ने पूरे देश में राजनीतिक आग लगा दी। उन्होंने कहा, ‘तमिल के लिए केंद्र सरकार ने 150 करोड़ रुपये दिए, जबकि संस्कृत के लिए 2,400 करोड़।’ ये आंकड़े सच थे। लेकिन जब आप एक भाषा को ‘मृत’ कह दें, तो वह आंकड़ा नहीं, एक आस्था को चोट पहुंचाता है।

एक बयान, एक आग

उदयनिधि स्टालिन ने अपने बयान में केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह तमिल की उपेक्षा कर रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किया — ‘जब आप तमिल सीखने के लिए उत्सुक हैं, तो बच्चों को हिंदी और संस्कृत क्यों सिखा रहे हैं?’ ये सवाल तकनीकी रूप से एक शिक्षा नीति के बारे में था। लेकिन इसका तात्पर्य था — ‘तुम हमारी भाषा को नजरअंदाज कर रहे हो।’ और यही तात्पर्य ने एक ऐसी आग लगा दी जिसे बुझाना अब लगभग असंभव हो गया है।

भाजपा की प्रतिक्रिया: भावनाओं को ठेस पहुंचाना

भारतीय जनता पार्टी के नेता तुरंत उठ खड़े हुए। तमिलिसाई सुंदरराजन ने कहा, ‘कोई भी किसी भाषा को मरा हुआ कहने का हक नहीं रखता।’ वो सही हैं। संस्कृत मृत नहीं है। ये भाषा आज भी हर देवालय में गूंजती है, हर विवाह में उच्चारित होती है, हर यज्ञ में जलती है। इसकी आवाज़ अभी भी लाखों लोगों के दिलों में बजती है।

गौरव भाटिया ने कहा — ‘एक बार फिर हिंदुओं और हमारी संस्कृति का अपमान।’ ये बात सिर्फ भाषा के बारे में नहीं, एक सांस्कृतिक पहचान के बारे में है। और तरुण चुग ने यह भी जोर दिया — ‘भारत के प्राचीन मूल्यों के खिलाफ बोलना फैशन बन गया है।’ ये एक गहरी नाराजगी है। उनका कहना है कि डीएमके नेता अब इसे अपनी राजनीति का टूल बना रहे हैं।

क्या संस्कृत वाकई मृत है?

यहां एक दिलचस्प बात है — संस्कृत जिस तरह से जीवित है, वो किसी भी आधुनिक भाषा से अलग है। ये वह भाषा है जिसने वेदों से लेकर भारतीय दर्शन तक का आधार बनाया। इसका उपयोग आज भी विश्वविद्यालयों में होता है, जैसे संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी। ये भाषा बोली नहीं जाती, लेकिन सुनी जाती है। ये नहीं मरी, बस अपने तरीके से जी रही है।

क्या तमिल मृत है? नहीं। ये दुनिया की सबसे प्राचीन जीवित भाषाओं में से एक है। इसका उपयोग रोज़ाना लाखों लोग करते हैं। इसकी लिटरेचर 2,000 साल पुरानी है। तो ये सवाल क्यों उठा? क्योंकि उदयनिधि स्टालिन ने एक आर्थिक तथ्य को एक सांस्कृतिक आक्रमण में बदल दिया।

पिछले विवाद: एक नमूना

पिछले विवाद: एक नमूना

यह पहली बार नहीं है। सितंबर 2023 में, उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को ‘डेंगू और मलेरिया’ बताया था। उस बयान पर भी भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। फिर 2024 में, उन्होंने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया। अब ये तीसरा बयान है — और ये सब एक ही धागे पर बंधे हैं।

एक बात साफ है — ये बयान राजनीति के लिए नहीं, बल्कि भावनाओं को छेड़ने के लिए हैं। एक राजनेता के लिए ये आसान रास्ता है — एक बड़ी भाषा को नीचा दिखाकर, अपनी भाषा को ऊंचा दिखाना। लेकिन ये नहीं है विकास। ये है विभाजन।

क्या दोनों भाषाएं एक साथ नहीं बढ़ सकतीं?

के. अन्नामलाई, तमिलनाडु भाजपा के पूर्व अध्यक्ष, ने एक बहुत ही सूक्ष्म बात कही — ‘तमिल ने संस्कृत समेत कई भाषाओं के शब्दों को आत्मसात किया है। यह इसकी कमजोरी नहीं, बल्कि इसकी ताकत है।’

यही तो सच है। तमिल में ‘देव’, ‘गुरु’, ‘धर्म’, ‘मोक्ष’ जैसे शब्द संस्कृत से आए हैं। इसका मतलब ये नहीं कि तमिल कमजोर है। इसका मतलब है कि ये खुली है। ये सीखने के लिए तैयार है।

क्या भारत की भाषाएं एक दूसरे के खिलाफ होनी चाहिएं? नहीं। भारत की शक्ति इसी में है कि यहां 22 भाषाएं एक साथ बोली जाती हैं। ये विविधता है। ये एकता है।

अगला कदम क्या होगा?

अगला कदम क्या होगा?

अब भाजपा ने इस बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की बात कही है। अगर ऐसा हुआ, तो ये पहली बार होगा कि किसी भाषा के बारे में बोलने के लिए कोर्ट में जाना पड़ेगा। ये खतरनाक मोड़ है।

राजनीति में शब्दों का वजन बहुत ज्यादा होता है। लेकिन क्या एक शब्द के लिए देश को फाड़ना पड़े? क्या एक बयान के लिए दो भाषाओं के बीच दरार डालनी पड़े?

अगर दोनों भाषाएं एक साथ बढ़ सकती हैं — तो क्यों एक को दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या संस्कृत वाकई मृत भाषा है?

नहीं। संस्कृत बोली नहीं जाती, लेकिन इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों, विश्वविद्यालयों और शास्त्रों में आज भी होता है। भारत में 14 संस्कृत विश्वविद्यालय हैं, जहां इसे अध्ययन किया जाता है। यह एक जीवित सांस्कृतिक विरासत है, जिसकी आवाज़ दिलों में बजती है।

क्यों तमिल के लिए इतना कम फंडिंग मिल रहा है?

तमिलनाडु सरकार के अनुसार, केंद्र सरकार ने 2020-21 से 2024-25 तक तमिल के लिए कुल 150 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जबकि संस्कृत के लिए 2,400 करोड़। इसका कारण संस्कृत के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालयों, अनुसंधान केंद्रों और विशेष योजनाओं का होना है, जबकि तमिल के लिए अधिकांश फंड राज्य सरकार की ओर से आता है।

क्या उदयनिधि स्टालिन के बयान के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है?

हां, भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की संभावना जताई है। पिछले वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ‘बेतुके बयानों’ को फटकार लगाई है। भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले बयानों के खिलाफ धारा 295A IPC के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

क्या भारत में भाषाओं के बीच प्रतिस्पर्धा जरूरी है?

नहीं। भारत की शक्ति भाषाओं की विविधता में है। तमिल, संस्कृत, हिंदी, बांग्ला — सभी एक दूसरे के साथ साझा सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। एक भाषा को ऊंचा उठाने के लिए दूसरी को नीचा दिखाना राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक है।

क्या उदयनिधि स्टालिन के बयान ने तमिल लोगों के बीच समर्थन बढ़ाया?

कुछ तमिल लोगों ने इस बयान को तमिल के लिए एक संघर्ष के रूप में देखा, लेकिन अधिकांश शिक्षित वर्ग ने इसे अनुचित पाया। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 68% तमिल लोगों ने कहा कि भाषाओं की तुलना नहीं, बल्कि सम्मान किया जाना चाहिए।

क्या भाजपा की प्रतिक्रिया अतिरंजित है?

भाजपा की प्रतिक्रिया भावनात्मक लग सकती है, लेकिन उनका दावा सच है — संस्कृत कोई मृत भाषा नहीं है। इसका अपमान करना लाखों लोगों की आस्था को ठेस पहुंचाता है। लेकिन राजनीति में भावनाओं को बढ़ावा देना खतरनाक है। यहां दोनों ओर की भाषा बर्बरता है।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।

Yogesh Popere

संस्कृत मरी नहीं, बस लोग भूल गए कि इसके बिना हमारी सभ्यता कैसे चली।

Tanya Bhargav

मुझे लगता है दोनों भाषाओं को सम्मान देना चाहिए, एक को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश बेकार है।

Rajendra Gomtiwal

ये सब राजनीति है, न कि भाषा का मुद्दा। जब तक हम अपनी भाषाओं को लेकर इतने जुनूनी रहेंगे, तब तक हमारी शिक्षा और विकास रुका रहेगा।

Ambika Dhal

उदयनिधि स्टालिन ने जानबूझकर ये बयान दिया है - ये उनकी रणनीति है। वो जानते हैं कि जब आप संस्कृत को ‘मृत’ कहते हैं, तो हिंदू भावनाएं जल जाती हैं। और फिर वो अपने वोट बैंक को जगाते हैं।

Manoj Rao

अरे भाई, ये सिर्फ भाषा का मुद्दा नहीं है - ये तो संस्कृति की आत्मा का सवाल है। संस्कृत में छिपी है वेदों की ज्ञान-धारा, उपनिषदों का अनंत ब्रह्म, गीता का अमर ज्ञान। इसे मृत कहना वैसा ही है जैसे आप चंद्रमा को ‘बंद बत्ती’ कह दें क्योंकि आप उसे नहीं देख रहे।

और फिर तमिल? अच्छा, तमिल में भी ‘देव’, ‘गुरु’, ‘धर्म’, ‘मोक्ष’ - सब संस्कृत से आया है। तो क्या तमिल बिना संस्कृत के है? नहीं। ये दोनों एक ही वृक्ष की डालें हैं।

और फंडिंग? अरे यार, केंद्र सरकार ने संस्कृत के लिए विश्वविद्यालय, अनुसंधान, प्रकाशन, डिजिटल आर्काइव्स - सब कुछ बनाया है। तमिल के लिए राज्य सरकार खुद फंड करती है। तो क्या ये अन्याय है? नहीं। ये व्यवस्था है।

और फिर सुप्रीम कोर्ट? अगर कोई आपकी आत्मा को ‘मृत’ कह दे, तो क्या आप चुप रहेंगे? नहीं। ये भावनाएं आपकी जड़ें हैं। इन्हें ठेस पहुंचाना अपराध है।

और जो लोग कहते हैं ‘ये राजनीति है’, तो उनकी भी राजनीति है - वो चाहते हैं कि हम सब चुप रहें। लेकिन हम चुप नहीं रहेंगे।

संस्कृत मरी नहीं। वो तो अभी भी हर गीत, हर मंत्र, हर श्लोक में जी रही है। और जब तक हम इसे सुनेंगे, वो जीवित रहेगी।

Sanket Sonar

संस्कृत का उपयोग जीवित है - बस बोलने की जगह नहीं, गूंजने की है।

pravin s

क्या हम एक दूसरे को समझने की जगह लड़ने के लिए इतने जुनूनी क्यों हो गए?

Vaneet Goyal

ये बयान एक अपराध है। भाषा को मृत कहना उसके इतिहास को मिटाने की कोशिश है। संस्कृत कोई पुरानी भाषा नहीं - ये हमारी जड़ें हैं।

Alok Kumar Sharma

दोनों भाषाएं जीवित हैं। बस एक बोली जाती है, दूसरी गूंजती है।

Bhavesh Makwana

भारत की शक्ति इसी में है कि हम एक दूसरे की भाषाओं को सम्मान करते हैं। तमिल के बिना भारत अधूरा है, और संस्कृत के बिना तमिल भी अधूरा।

Vidushi Wahal

मैंने देखा है कि तमिल बच्चे संस्कृत मंत्र गाते हैं - और उन्हें लगता है ये अपनी भाषा का हिस्सा है। ये विविधता है।

Vikash Kumar

ये सब एक धोखा है। जो लोग संस्कृत को मृत कहते हैं, वो खुद उसके शब्दों का इस्तेमाल करते हैं - बस इतना ही बदमाशी है।

Siddharth Gupta

भाषाएं लड़ती नहीं, बस एक-दूसरे के साथ नाचती हैं। तमिल का ताल और संस्कृत का स्वर - दोनों मिलकर भारत का संगीत बनाते हैं।

Bharat Mewada

भाषा को मृत कहना उसके आत्मा को मारना है। संस्कृत कोई लिपि नहीं, ये तो हमारे विचारों की जड़ है।

Amita Sinha

मैं तो बस यही कहना चाहती हूँ - जब तक हम एक दूसरे को नहीं समझेंगे, तब तक ये लड़ाइयाँ बंद नहीं होंगी 😔

Anoop Singh

तुम्हें पता है कि संस्कृत में 'जीवित' शब्द का अर्थ है 'अनंत रूप से उत्पन्न होता हुआ'? तो कैसे कह सकते हो ये मर गई?

Omkar Salunkhe

क्या आपने कभी सोचा कि तमिल के लिए 150 करोड़ भी ज्यादा है? ये सब बर्बादी है।