राजस्थान की कृषि विश्वविद्यालयों में वीसी हटाए, नए नियुक्तियों पर उलटफेर

जब डॉ. अरुण कुमार, विश्वविद्यालय कुलपति (वीसी) स्वामी केशवानंद राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, बीकानेर को हरिभाऊ बागड़े, राज्यपाल, राजस्थान ने 26 अगस्त 2025 को ‘प्रबंधकीय दुराचार’ के आरोपों के तहत हटाया, तो राज्य के चार कृषि विश्वविद्यालयों में एक ही सप्ताह में दो‑तीन नई नियुक्तियाँ दर्ज हो गईं। यह तेज‑तर्रार बदलाव न केवल शैक्षणिक प्रशासन को हिला रहा है, बल्कि छात्रों और विद्वानों के बीच गहरी चिंता भी पैदा कर रहा है।
पृष्ठभूमि: पिछले साल के प्रशासनिक अस्थिरता
रुजाना से शुरू हुई टांग‑टुंग के साथ, राजस्थान के कृषि शिक्षा परिदृश्य में पहले भी कई विद्रोह देखे जा चुके हैं। 2024‑2025 के दौरान, छात्रों ने उधार‑जमा की गई सुविधा, अनुसंधान फंड के वितरण और अनियमित चयन प्रक्रियाओं को लेकर कई विरोध प्रदर्शन किए थे। इस माहौल में, 26 अगस्त 2025 को डॉ. अरुण कुमार की पदच्युति एक सिग्नल बन गई कि राज्य सरकार अब सख्त कदम उठाने को तैयार है।
अखिल रंजन गार्ग: दो विश्वविद्यालयों में एक साथ वीसी का दायित्व
डॉ. अरुण कुमार के हटाए जाने के बाद, प्रो. अखिल रंजन गार्ग, शैक्षणिक प्रोफ़ेसर, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग को अस्थायी रूप से दो कृषि विश्वविद्यालयों के वीसी के रूप में नियुक्त किया गया। उनके पास आईआईटी दिल्ली से पीएच.डी. है और 32 वर्षों से अधिक का शिक्षण‑अनुसंधान अनुभव है। गार्ग इस समय एम.बी.एम. यूनिवर्सिटी, जोधपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफ़ेसर के पद पर हैं, पर लियन पर हैं।
उनकी नियुक्ति 27 अगस्त 2025 को अग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, जोधपुर और 28 अगस्त 2025 को स्वामी केशवानंद राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, बीकानेर दोनों में प्रभावी हुई। गार्ग के शोध क्षेत्र—कम्प्यूटेशनल न्यूरोसाइंस, इंटेलिजेंट सिस्टम, पावर सिस्टम और मशीन लर्निंग—विदेशी अकादमिक मंचों में सराहे गये हैं, और 55 से अधिक अंतरराष्ट्रीय जर्नल‑कन्फ्रेंस पेपर्स के लेखक हैं। उन्होंने एम.बी.एम. यूनिवर्सिटी में ‘डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग’ के प्रमुख, ‘सेंट्रल फॉर नॉन‑कन्वेंशनल एनर्जी’ के संचालक तथा जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के ‘एजुकेशनल मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर’ के निदेशक के तौर पर भी कार्य किया है।
30 सितंबर 2025 की व्यापक नियुक्तियाँ
तीन सप्ताह बाद, जब कलराज मिश्रा, राज्यपाल, राजस्थान ने राज्य सरकार के साथ मिलकर आठ विश्वविद्यालयों के वीसी के नाम घोषित किए, तो माहौल अपना ही नया मोड़ ले गया। आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया गया कि इन नियुक्तियों के लिए तीन‑साल की अवधि या 70 वर्ष की आयु तक, जो पहले आए, वह लागू होगी। प्रमुख नियुक्तियों में शामिल हैं:
- डॉ. अभय कुमार व्यास – कृषि विश्वविद्यालय, कोटा के वीसी
- प्रो. बगदा राम चौधरी – कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के वीसी
- डॉ. अरुण कुमार – स्वामी केशवानंद राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, बीकानेर के वीसी (जुलाई‑अगस्त की हटाई गई पदस्थापना के बाद पुनः नियुक्ति)
- प्रो. रामसेवक दुबे – जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के वीसी
- डॉ. अजीत कुमार – महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के वीसी
- प्रो. प्रदीप कुमार प्रजापति – डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर के वीसी
- प्रो. कैलाश सोधानी – वार्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी, कोटा के वीसी
- डॉ. बालराज सिंह – श्री करन नारायण कृषि विश्वविद्यालय के वीसी
इनमें सबसे चौंकाने वाला हिस्सा था डॉ. अरुण कुमार की पुनः नियुक्ति, जो पहले ही महीने में हटाए गये थे। राज्यपाल मिश्रा ने बताया कि यह ‘क़ानून के अनुसार’ किया गया था, पर कई शैक्षणिक संगठनों ने इसे ‘प्रशासनिक गड़बड़ी’ कहकर आलोचना की।
प्रतिक्रिया और संभावित प्रभाव
छात्र संगठनों ने तुरंत प्रदर्शन किया, विशेषकर बीकानेर के कृषि छात्रों ने ‘एक ही महीने में दो बार वीसी बदलना असंवैधानिक है’ का नारा लगाया। उन्होंने सोशल मीडिया पर #VCResetDemand हैशटैग का उपयोग करके अपनी नाराज़गी जताई। वहीं, कई वरिष्ठ प्राध्यापकों ने कहा कि दो‑तीन महीनों में इतने बड़े‑बड़े नामों का आदान‑प्रदान संस्थागत निरंतरता को नुकसान पहुँचा सकता है।
प्रशासनिक विशेषज्ञ डॉ. रतीश मेहता (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद) का मानना है कि ‘उच्च स्तर की वैधता और पारदर्शिता के बिना ऐसी नियुक्तियां विश्वविद्यालयों की आत्मविश्वास को घटाती हैं, और शोध‑फंडिंग में देरी का कारण बन सकती हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि यदि राज्य सरकार सतत सुधार की राह नहीं अपनाती, तो बाहरी एजेंसियों (जैसे अफ्रीकन एग्रीकल्चर फंड) से सहयोग समस्याग्रस्त हो सकता है।
आगे का रास्ता: क्या बदलाव टिक पाएँगे?
भविष्य को देखे तो, इस बार के बड़े‑पैमाने के वीसी शफ़़ल, जो कि तीन‑साल के अनुबंध पर आधारित हैं, राज्य के शैक्षणिक नीतियों में स्पष्ट दिशा‑निर्देश दिखा रहे हैं। परन्तु यदि पुनः नियुक्ति जैसी विरोधाभासियां बनी रहती हैं, तो ‘भविष्य के लिए नीतिगत सुधार’ की मांग और तेज़ हो सकती है। कुछ विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय नियामक बोर्ड की स्थापना की जाए, जो नियुक्तियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाकर merit‑based आधार पर तय करे।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि राजस्थान की कृषि विश्वविद्यालय प्रणाली इस साल ‘गुज़रते समय’ की परीक्षा से गुजर रही है: क्या यह अस्थिरता के बाद स्थिरता की राह चुन पाएगी, यह आने वाले महीनों में स्पष्ट होगा।
मुख्य तथ्य
- डॉ. अरुण कुमार को 26 अगस्त 2025 को हटाया गया।
- प्रो. अखिल रंजन गार्ग ने 27‑28 अगस्त 2025 को दो विश्वविद्यालयों के वीसी का कार्यभार संभाला।
- 30 सितंबर 2025 को राज्यपाल कलराज मिश्रा ने आठ विश्वविद्यालयों के नए वीसी नियुक्त किए।
- डॉ. अरुण कुमार की पुनः नियुक्ति ने भारी विरोध को जन्म दिया।
- विद्यार्थी संगठनों और शैक्षणिक विशेषज्ञों ने पारदर्शिता और स्थिरता की मांग की।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्यों डॉ. अरुण कुमार को हटाने के बाद दोबारा नियुक्त किया गया?
राज्यपाल कलराज मिश्रा ने कहा कि नियुक्ति ‘क़ानून के दायरे में’ की गई थी। वे मानते हैं कि पिछले हफ्तों की प्रक्रिया के दौरान आवश्यक दस्तावेज़ी कार्यवाही पूरी नहीं हुई थी, इसलिए पुनः नियुक्ति सुगम हुई। हालांकि, कई प्रोफेसरों और छात्र संघों ने इसे प्रशासनिक उलझन और वैधता पर सवाल उठाते हुए देखा।
प्रो. अखिल रंजन गार्ग दो विश्वविद्यालयों के वीसी एक साथ क्यों संभाल रहे हैं?
गार्ग को अस्थायी (लियन) आधार पर दो संस्थाओं के वीसी के रूप में नियुक्त किया गया था, क्योंकि तत्काल वैकल्पिक उम्मीदवार उपलब्ध नहीं थे। यह एक ट्रांज़िशनल उपाय माना गया, जिससे विश्वविद्यालय संचालन में कोई रुकावट न आए।
इन नियुक्तियों से छात्रों के शैक्षणिक जीवन पर क्या असर पड़ेगा?
काफी छात्रों ने कहा कि लगातार नेतृत्व परिवर्तन से शोध फंड, प्रोजेक्ट मंजूरी और पाठ्यक्रम सुधार में देरी हो सकती है। यदि नई प्रशासनिक टीम स्थिरता लाती है, तो प्रैक्टिकल प्रशिक्षण और रोजगार प्लेसमेंट में सुधार की संभावना भी है।
भविष्य में ऐसे प्रशासनिक उलटफेर रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय नियामक निकाय की स्थापना हो, जो नियुक्तियों का मूल्यांकन merit‑based आधार पर करे। साथ ही, राज्य सरकार को स्पष्ट वैधता मानकों के साथ नियुक्ति प्रक्रिया को सार्वजनिक करने की जरूरत है।
राज्य में अन्य कृषि विश्वविद्यालयों में क्या समान समस्याएँ चल रही हैं?
हैदराबाद के हरीयाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में भी छात्रों ने वीसी बी.आर. काम्बोज़ के खिलाफ प्रदर्शन किया था, जहाँ वे मनाते थे कि प्रशासनिक दमन के आरोप हैं। यह संकेत देता है कि राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर‑पश्चिमी क्षेत्र में कृषि शिक्षा में प्रशासनिक सुधार की आवश्यकता है।
Rajbir Singh
उद्योगिक प्रबंधन में निरंतर अस्थिरता देखने को मिलती है; स्थिरता के बिना शैक्षणिक गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।