दिल्ली में दिवाली पर पटाखों के बैन के बावजूद गगन में आतिशबाज़ी, वायु गुणवत्ता पर मंडराते खतरे

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दिवाली पर प्रदूषण को लेकर गंभीर चुनौतियां

दिल्ली के आसमान में दिवाली के मौके पर होने वाली अमिट आतिशबाज़ी एक ओर जहां त्योहार की खुशियां मनाती है, वहीं दूसरी ओर वायु गुणवत्ता के लिए गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत करती है। हर साल की तरह इस बार भी सरकार की ओर से पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। मकसद साफ था: पहले से ही प्रदूषण झेल रहे शहर की वायु गुणवत्ता में सुधार लाना। लेकिन दिल्ली के निवासियों ने इस प्रतिबंध को नज़रअंदाज़ किया।

सरकार और पुलिस की कोशिशें

सरकार ने पटाखों के भंडारण, बिक्री और उपयोग पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने का निर्णय लिया, जिससे त्योहार के दौरान वायु गुणवत्ता में सुधार किया जा सके। पुलिस और प्रशासन ने भी इसका पालन कराने के लिए अनेक कदम उठाए। पुलिस द्वारा 19,000 किलोग्राम पटाखे जब्त किए गए, लेकिन प्रतिबंध को लागू करने में कई बाधाएँ रहीं।

पर्यावरण को बढ़ते खतरे

दिल्ली में दिवाली के बाद प्रदूषण स्तर में भारी वृद्धि देखी गई है। आतिशबाज़ी के उपयोग से वायु में हानिकारक कणों की मात्रा बढ़ती है, जिससे न केवल पर्यावरण पर बल्कि स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। इसके साथ ही, पास के राज्यों में पराली जलाने और अनुकूल मौसम विज्ञान संबंधी स्थितियों के कारण भी स्थिति और खराब होती है।

वायु गुणवत्ता की स्थिति और उपाय

दिवाली से पहले हुई बारिश और अनुकूल वायुवेग के कारण वायु गुणवत्ता में थोड़ा सुधार हुआ था। हालांकि, पटाखों के प्रयोग से उत्पन्न प्रदूषण और दिवाली के बाद की संभावित स्थिति ने सरकार और नागरिकों की चिंता बढ़ा दी है। इसके लिए संभावित रूप से 'ऑड-ईवन' कार राशनिंग योजना पर विचार किया जा रहा है।

स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव

लगातार बढ़ते प्रदूषण के गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव होते हैं। डॉक्टरों की मानें तो दीर्घकालिक प्रदूषण के संपर्क में आने से सांस लेने में तकलीफ, अस्थमा जैसी समस्याएं होने की संभावना बढ़ जाती हैं। शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा में लगभग 12 वर्ष की कमी हो रही है।

महत्वपूर्ण चेतावनी

महत्वपूर्ण चेतावनी

दिल्ली के प्रदूषण के मुद्दे को एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए। हमारी पारंपरिक प्रथाएं जनहित के लिए नुकसान दायक हो सकती हैं, जिन्हें कुछ सीमा तक अनुशासित करना आवश्यक है। जब तक हम अपने सामूहिक उत्सवों का पर्यावरणीय प्रभाव समझकर बदलाव नहीं लाना शुरू करते, तब तक स्थिति में किसी भी प्रकार का बड़ा सुधार मुश्किल है।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।

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praful akbari

दिवाली के बिना आतिशबाज़ी कला कैसे बचेगी? लेकिन हम इसे सिर्फ रात के 30 मिनट में सीमित कर सकते हैं। एक बार जब आदत बन जाए तो लोग खुद रोक लेंगे।
प्रदूषण का सवाल नहीं, बल्कि संस्कृति का सवाल है।

kannagi kalai

सरकार ने पटाखे पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन किसी ने नहीं सोचा कि लोग घरों में छिपाकर जलाएंगे। इसलिए पुलिस की जब्ती का आंकड़ा बहुत अधिक नहीं है।

Roy Roper

पटाखे बंद करो या शहर बंद करो ये दो ही विकल्प हैं क्योंकि लोग बेकार की बातें करते रहेंगे और कुछ नहीं बदलेगा

Sandesh Gawade

हम अपनी सेहत के लिए भी नहीं लड़ते तो किसके लिए लड़ेंगे? दिल्ली में एक बच्चा जन्म लेता है तो उसकी फेफड़ों की क्षमता पहले से ही 30% कम हो चुकी होती है। ये त्योहार नहीं बल्कि अपनी बेबसी का नाम है।
आज से बंद करो। बस।

MANOJ PAWAR

मैंने पिछले साल दिवाली पर एक छोटा सा बाज़ार देखा जहां लोग बिना धुएं के LED लाइट्स और साउंड सिस्टम से त्योहार मना रहे थे। बच्चे नाच रहे थे, बुजुर्ग मुस्कुरा रहे थे। ये भी दिवाली है।
हम आतिशबाज़ी को त्योहार की परिभाषा बना देते हैं, लेकिन त्योहार तो परिवार के साथ बिताया जाता है।

Pooja Tyagi

पटाखों के बैन के बाद भी वायु गुणवत्ता खराब? तो क्या अब बारिश भी गलत है? जब तक हम राज्यों को पराली जलाने से नहीं रोकेंगे, तब तक दिल्ली को दोष नहीं देना चाहिए।
और हाँ, शिकागो की रिपोर्ट? वो तो भारतीय जनसांख्यिकी को नहीं समझते! ये आंकड़े गलत हैं।

Kulraj Pooni

हम सब अपने अहंकार के लिए त्योहार मनाते हैं... ये नहीं कि हम पर्यावरण के लिए जिम्मेदार हैं।
एक बार जब हम अपने बच्चों को बताएंगे कि तुम्हारी सांस लेने की क्षमता कम हो रही है क्योंकि तुम्हारे पिता ने दिवाली पर पटाखे फोड़े... तब शायद बदलाव आएगा।
लेकिन आज तक कोई नहीं चाहता कि उसकी आदतें बदलें।
हम लोग जिंदगी को बचाने की बजाय उसे दिखाने के लिए जीते हैं।