चीन ने WTO में विकासशील देश की विशेष स्थिति को छोड़ने का ऐलान किया

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चीन का नया WTO‑सिग्नेचर: विकासशील राज्य की विशेषता छोड़ना

न्यूयॉर्क में 80वें संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान प्रीमियर ली क्यो़ंग ने एक विकास फ़ोरम में कहा कि चीन अब WTO के तहत विकासशील देशों को मिलने वाली डब्ल्यूटीओ की विशेष सुविधाएँ नहीं माँगेगा। यह घोषणा हल्के‑फुल्के शब्दों में नहीं, बल्कि चीन के अर्थव्यवस्था के दो‑तीन दशकों की उन्नति को दर्शाते हुए आई है। वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि यह कदम वैश्विक व्यापार प्रणाली को टैरिफ युद्ध और सुरक्षावादी नीतियों से बचाने के लिये है।

जिन सुविधाओं को अब चीन छोड़ रहा है, वे सामान्यतः विकासशील देशों को दी जाती हैं: समझौतों को लागू करने के लिये लंबे समय‑सीमा, तकनीकी सहायता की उपलब्धता और कुछ नियमों से छूट। इन उपायों का मकसद विकसित देशों की ताकत को संतुलित करना और पिछड़े देशों को तेज़ी से एग्रेस करने में मदद करना रहा है। लेकिन चीन, जो अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, ने कई वर्षों से खुद को "मध्य‑आय स्तर" का बतलाकर इस वर्ग में रखा।

पीछे की राजनीति और संभावित प्रभाव

पीछे की राजनीति और संभावित प्रभाव

अमेरिका ने कई सालों से चीन के इस वर्गीकरण को चुनौती दी थी, क्योंकि यह चीन को टैरिफ‑रिलैक्स और सबसे कम बाजार‑प्रवेश प्रतिबंधों का लाभ देता है। ट्रम्प प्रशासन के दौरान टैरिफ‑धारी नीति को बढ़ावा दिया गया, और इस फैसले को कई अभिजात्य विश्लेषकों ने “अमेरिका की मांग का जवाब” माना। विकसित देशों, विशेषकर यूरोपीय संघ, ने भी चीन के बाजार में प्रवेश के लिये दीर्घकालिक बाधाओं की शिकायत की थी। अब यह सवाल उठ रहा है कि चीन का यह बदलाव विदेशी वस्तुओं को अधिक खोल देगा या नहीं।

डब्ल्यूटीओ के महासचिव नगॉज़ी ओकोंजो‑इवेला ने इस खबर को "डब्ल्यूटीओ सुधार का प्रमुख कदम" कहा और सोशल मीडिया पर धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, "यह कई वर्षों की मेहनत का परिणाम है।" उनका यह टिप्पणी संकेत देता है कि अंतरराष्ट्रीय मंच इस कदम को चीन‑केन्द्रित नेतृत्व के रूप में देख रहा है।

यह निर्णय केवल भविष्य के WTO वार्ताओं पर असर डालेगा, मौजूदा समझौतों को नहीं बदलेगा। चेंग के दूत ली यीहोंग ने जेनिवा में कहा कि यह "चीनी खुद की सोच" है और अन्य विकासशील देशों को इसका अनुसरण करने की अपेक्षा नहीं रखता। वे संकेत देते हैं कि चीन अभी भी विकासशील विश्व का हिस्सा है, लेकिन वह अब खुद को "आर्थिक शक्ति" के रूप में स्थापित करना चाहता है।

प्रमुख बिंदु जो इस बदलाव को समझने में मदद करेंगे:

  • विशेष और अंतर­भेदात्मक उपचार (Special & Differential Treatment) को बंद करना।
  • भविष्य के WTO समझौते में अधिक कड़ाई से नियमों का पालन करना।
  • विश्व व्यापार को बहुपक्षीकरण की दिशा में ले जाना, द्विपक्षीय टकराव को कम करना।
  • अन्य विकासशील देशों को अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता देना, बिना दबाव के।

ली क्यो़ंग ने अपने भाषण में बहुपक्षीयता और मुक्त व्यापार के समर्थन को दोहराते हुए कहा, "बहुध्रुवीय दुनिया और वैश्वीकरण की प्रवृत्ति अपरिवर्तनीय है।" उन्होंने बिना किसी विशेष देश का नाम लिए, लेकिन स्पष्ट तौर पर संरक्षणवादी नीतियों और डिकप्लिंग की चेतावनी दी। उनका कहना था कि अगर देशों ने आपस में अलगाव की दिशा ली, तो यह न केवल आर्थिक विकास को रोक देगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को भी कमजोर करेगा।

डब्ल्यूटीओ को अब कई सालों से कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है: समझौतों का पालन नहीं होना, विवाद निराकरण में धीमी गति, और बरकरार रहने वाले संरक्षणवादी उपाय। चीन का यह कदम इस संस्थान को रीपोज़िशन करने की कोशिश माना जा रहा है, खासकर जब कई विकसित और विकासशील दोनों देशों से सुधार की मांगें बढ़ रही हैं।

भविष्य में यह देखना होगा कि चीन की यह नई नीति किस हद तक वास्तविक व्यापार बाधाओं को कम करती है, और क्या यह अन्य प्रमुख आर्थिक खिलाड़ियों को भी समान कदम उठाने पर प्रेरित करती है। यदि चीन अपने प्रतिबद्धताओं को सच्चाई में लागू करता है, तो विश्व व्यापार प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव ज़रूर दिखेगा।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।