Foreign Portfolio Investors – समझिए आसान भाषा में

जब आप समाचार में "FPI" या "विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक" का जिक्र सुनते हैं, तो अक्सर लगेगा कि यह सिर्फ बड़े वित्तीय शब्द हैं। दरअसल, ये वही लोग या संस्थाएँ होती हैं जो भारत के शेयर‑बाज़ार, बॉण्ड और अन्य सिक्योरिटीज़ में पैसा लगाते हैं, लेकिन यहाँ उनका कोई कंपनी नहीं बनता। इस लेख में हम बताएँगे कि FPI कैसे काम करता है, उनके निवेश का तरीका क्या होता है, और भारतीय बाजार पर इसका क्या असर पड़ता है—सब कुछ सीधे‑साधे शब्दों में।

FPI कैसे निवेश करते हैं?

FPI को भारत की प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए RBI (Reserve Bank of India) से लाइसेंस चाहिए होता है। एक बार लाइसेंस मिल गया, तो वे अपने क्लाइंट या खुद की पूँजी का इस्तेमाल करके शेयर‑बाज़ार में खरीद‑फ़रोख्त कर सकते हैं। उनका लक्ष्य दो चीज़ों पर फोकस करता है: रिटर्न कमाना और पोर्टफोलियो को विविध बनाकर जोखिम घटाना। उदाहरण के तौर पर, अगर उन्हें लगता है कि टैक्नॉलॉजी स्टॉक आगे बढ़ेंगे, तो वे उन कंपनियों के शेयर ज्यादा खरीदते हैं; वहीं अगर तेल‑बाजार में उतार‑चढ़ाव देखेँ तो कम निवेश करते हैं या हेजिंग उपाय अपनाते हैं।

FPI का भारतीय शेयर बाजार पर प्रभाव

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की भागीदारी से भारत के मार्केट में कई फायदे होते हैं। सबसे पहले, उनकी बड़ी पूँजी बाजार में लिक्विडिटी बढ़ाती है—मतलब खरीद‑फ़रोख्त आसान हो जाती है और कीमतें स्थिर रहती हैं। दूसरा, जब FPI किसी सेक्टर में भरोसा दिखाते हैं तो स्थानीय निवेशकों का भी मन वहीँ लग जाता है, जिससे उस उद्योग को विकास की गति मिलती है। लेकिन एक दिक्कत यह भी है कि अगर विदेशी निवेशक अचानक पैसा निकालते हैं, तो शेयर‑कीमतें गिर सकती हैं और मार्केट वोलैटिलिटी बढ़ जाती है। इसलिए सरकार ने कुछ नियम बनाए हैं—जैसे कि बड़ी बिक्री पर रिपोर्टिंग और सीमा तय करना—जिससे अचानक बड़े उतार‑चढ़ाव को रोका जा सके।

क्या आप व्यक्तिगत निवेशक हैं या सिर्फ़ जिज्ञासु? यदि आप FPI की चालों को समझते हैं, तो आप मार्केट में होने वाले बड़े बदलावों का पहले से अनुमान लगा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, जब RBI ने किसी सेक्टर पर विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगाया, तो उस सेक्टर के शेयर कीमतें तुरंत गिरने लगती थीं; वहीं अगर कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय फंड भारतीय टेक स्टॉक्स को खरीदना शुरू करता है, तो वहीँ रिटर्न की संभावना बढ़ जाती है। इस तरह की खबरों पर नज़र रखना आपके पोर्टफोलियो को सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है।

अंत में यह याद रखें कि FPI खुद में कोई जोखिम नहीं लाता—रिस्क उस निवेशक या फंड का होता है जो पैसा डालता है। लेकिन उनका बड़ा पैमाना और तेज़ ट्रेडिंग आपके मार्केट को प्रभावित करता है, इसलिए समझदारी से कदम उठाएँ। अगर आप नई योजना बना रहे हैं तो छोटे‑छोटे हिस्सों में शुरू करें, अपने रिसर्च पर भरोसा रखें, और आवश्यकता पड़ने पर प्रोफेशनल सलाह लें। इस तरह आप विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के साथ चलते हुए भी अपनी बचत को सुरक्षित रख सकते हैं।

GIFT Nifty में भारी गिरावट: अप्रैल के रिकॉर्ड के बाद मई में कारोबार में 46% कमी

GIFT Nifty में भारी गिरावट: अप्रैल के रिकॉर्ड के बाद मई में कारोबार में 46% कमी

गांधीनगर के GIFT City में स्थित NSE International Exchange पर ट्रेड होने वाले GIFT Nifty डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स में मई में भारी गिरावट दर्ज की गई है। अप्रैल के $82 बिलियन के रिकॉर्ड के मुकाबले मई में टर्नओवर $44.24 बिलियन रहा। विशेषज्ञ इस गिरावट को विदेशी निवेशकों के भारी बिकवाली और चुनावी नतीजों के अनिश्चितता से जोड़ते हैं।

जारी रखें पढ़ रहे हैं...