7 सितंबर 2025 चंद्रग्रहण: साल का आखिरी पूर्ण चंद्रग्रहण, ब्लड मून कब और कैसे देखें

मिर्ची समाचार

7-8 सितंबर की रात आसमान पर एक शानदार शो है—साल का आखिरी पूर्ण चंद्रग्रहण, जिसे आप देश के किसी भी कोने से देख सकते हैं। कुल 82 मिनट तक चांद पूरी तरह पृथ्वी की छाया में रहेगा और लालिमा लिए ‘ब्लड मून’ बन जाएगा। समय सुविधाजनक है, दृश्यता व्यापक है और वैज्ञानिक रूप से यह एक खास मौका है। अगर आप खगोल विज्ञान से प्यार करते हैं—या बस परिवार के साथ रात का एक यादगार नजारा देखना चाहते हैं—तो यह वही रात है। यह वही इवेंट है जिसे कई जगहों पर चंद्रग्रहण 2025 के नाम से याद किया जाएगा।

कब, कहाँ और कितना दिखेगा

समय पूरी तरह भारतीय मानक समय (IST) में है। चरण-दर-चरण टाइमलाइन:

  • पेनुम्ब्रा (धुंधली छाया) शुरू: 7 सितंबर, 8:58 PM
  • आंशिक चंद्रग्रहण शुरू: 7 सितंबर, 9:57 PM
  • पूर्ण (टोटल) चंद्रग्रहण शुरू: 7 सितंबर, 11:01 PM
  • अधिकतम ग्रहण: 7 सितंबर, 11:42 PM
  • पूर्ण चंद्रग्रहण समाप्त: 8 सितंबर, लगभग 12:23 AM
  • आंशिक चंद्रग्रहण समाप्त: 8 सितंबर, 1:26 AM
  • ग्रहण पूरी तरह समाप्त: 8 सितंबर, 2:25 AM

यानी करीब साढ़े पांच घंटे तक पूरा घटनाक्रम चलेगा और 82 मिनट तक चांद पूरी तरह पृथ्वी की घनी छाया (अम्ब्रा) में होगा। यह अवधि हाल के वर्षों में सबसे लंबी टोटैलिटीज़ में गिनी जाएगी।

कहाँ से दिखेगा? देशभर में—दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे, जयपुर, उदयपुर समेत सभी बड़े शहरों में यदि बादल ना हों तो पूरे चरण साफ दिखेंगे। उत्तर-पश्चिम भारत (राजस्थान, कच्छ, लद्दाख, सौराष्ट्र) में सितंबर के पहले पखवाड़े में आसमान आम तौर पर ज्यादा साफ मिलता है, इसलिए वहाँ से देखने के मौके बेहतर हैं। तटीय महाराष्ट्र, कर्नाटक और पूर्वी भारत में मानसूनी बादलों की संभावना रहती है, तो एक बैकअप स्थान और समय निकालें।

राजस्थान इस बार ‘प्रीमियर व्यूइंग जोन’ बनकर उभर रहा है—कम प्रकाश प्रदूषण, चौड़े क्षितिज, और सूखा मौसम मदद करता है। जैसलमेर-बाड़मेर की मरुस्थली बेल्ट, सम-सैंड ड्यून्स, कुंभलगढ़ जैसे ऊँचे किले, और अरावली की खुली चोटियां बेहतरीन स्पॉट हैं। शहरी दर्शक भी आसानी से देख सकेंगे—बस ऊँची इमारतों और स्ट्रीट लाइट्स से थोड़ा दूर, खुला आसमान चुनें।

भारत से बाहर भी यह नजारा बड़े हिस्से में दिखेगा—एशिया के ज्यादातर देशों में पूरे चरण, ऑस्ट्रेलिया में अच्छी दृश्यता (खासकर पश्चिमी हिस्से), अफ्रीका के बड़े हिस्से में और यूरोप के कई हिस्सों में आंशिक से लेकर पूर्ण चरण तक। अगर आप यात्रा पर हैं, तो स्थानीय समय क्षेत्र के हिसाब से IST से अंतर जोड़कर समय मिलाइए।

कहाँ से देखना है यह तय करते वक्त ये बातें ध्यान रखें:

  • क्षितिज खुला हो—पूर्व और दक्षिण-पूर्व दिशा में इमारतें/पेड़ न हों।
  • लाइट पॉल्यूशन कम हो—शहर से 10–20 किमी बाहर जाएं तो सितारे और ब्लड मून ज्यादा नाटकीय दिखेंगे।
  • मौसम प्लान-B—मानसूनी बादल दिखे तो 15–20 किमी दूर के सूखे/खुले हिस्से की बैकअप लोकेशन रखें।

क्या देखें, कैसे देखें—विज्ञान, मौसम और मान्यताएँ

ब्लड मून क्यों दिखता है? जब चंद्रमा पृथ्वी की घनी छाया में घुसता है, तब भी पूरी तरह काला नहीं होता। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से मुड़कर (रिफ्रैक्ट होकर) गुजरता है। इस दौरान नीली रोशनी बिखर जाती है और लाल-नारंगी तरंगें ज़्यादा बचती हैं। वही लालिमा चांद की सतह पर गिरती है और वह ताम्र-लाल दिखता है। अगर उस समय पृथ्वी के वातावरण में धूल/धुआं/एयरोसोल ज्यादा हों तो रंग गहरा तांबे जैसा हो सकता है, साफ-सुथरे हालात में रंग हल्का और सलेटी-लाल दिख सकता है।

आँखों के लिए पूरी तरह सुरक्षित: चंद्रग्रहण देखने के लिए किसी चश्मे, फिल्टर या खास उपकरण की जरूरत नहीं। आप नंगी आँखों से पूरे समय देख सकते हैं। दूरबीन या टेलिस्कोप हो तो क्रेटर का कॉन्ट्रास्ट और पृथ्वी की छाया का कटा किनारा बेहद साफ नज़र आएगा।

देखते वक्त क्या-क्या बदलता है, इसे चरणों में नोट करें:

  • आंशिक चरण (9:57 PM के बाद): चांद के किनारे से “कटा-कटा” सा हिस्सा दिखेगा। फोटो में कॉन्ट्रास्ट ज्यादा रहेगा।
  • टोटैलिटी शुरू (11:01 PM): अचानक रोशनी गिरती है, आसमान गहरा लगता है, आसपास के तारे उभर आते हैं।
  • अधिकतम (11:42 PM): लालिमा सबसे नाटकीय। अगर आसमान साफ है तो मिल्की वे की झिलमिल भी नजर आ सकती है।
  • टोटैलिटी समाप्त (12:23 AM के बाद): धीरे-धीरे चांद फिर से चमकदार बनता दिखेगा।

फोटोग्राफी गाइड (बिना भारी-भरकम जार्गन):

  • ट्राइपॉड लगाइए। जरा सी भी हिलावट फोटो खराब कर देती है।
  • स्मार्टफोन में नाइट मोड/प्रो मोड चालू करें, 2x–5x ऑप्टिकल ज़ूम से बनावट बेहतर आएगी।
  • DSLR/मिररलेस हो तो 200mm या ज्यादा टेलीफोटो मदद करेगा। आंशिक चरण में 1/250–1/500s, ISO 200–400 ठीक रहता है; टोटैलिटी में 1/2–2s और ISO 800–1600 तक जाना पड़ सकता है।
  • ब्रैकेटिंग करें—कई एक्सपोज़र लें। बाद में सबसे संतुलित तस्वीर चुनना आसान रहेगा।
  • रिमोट शटर/सेल्फ-टाइमर का इस्तेमाल करें ताकि कैमरा हिले नहीं।

मौसम का व्यावहारिक पहलू: सितंबर की शुरुआत में मानसून सक्रिय रहता है। पश्चिमी तट (महाराष्ट्र/कर्नाटक/केरल) और उत्तर-पूर्वी राज्यों में बादल-बारिश की संभावना ज्यादा होती है। उत्तर-पश्चिम (राजस्थान, पंजाब, हरियाणा), कच्छ-सौराष्ट्र और लद्दाख/स्पीति जैसे ऊँचे और शुष्क इलाकों में आसमान अक्सर साफ मिलता है। बड़े शहरों में भी बादलों में अक्सर “गैप” मिलते हैं—तो धैर्य रखें, आसमान बार-बार देखें और 10–15 किमी दूर की बैकअप साइट प्लान करें।

वैज्ञानिक महत्त्व क्या है? ऐसे पूर्ण चंद्रग्रहण पृथ्वी के वायुमंडल की “प्राकृतिक स्पेक्ट्रोस्कोपी” बन जाते हैं। जब लाल रोशनी मुड़कर चांद पर पड़ती है, तो उसकी खासियतें (जैसे जलवाष्प, धूल) वैज्ञानिकों को पता चलती हैं। कुछ वेधशालाएं टोटैलिटी के दौरान प्रकाश की सूक्ष्म जांच करके वातावरण की स्थिति रिकॉर्ड करती हैं। चांद की सतह भी टोटल फेज में तेज़ी से ठंडी पड़ती है—इससे रेगोलिथ (चांद की मिट्टी) की ऊष्मीय गुणों पर रिसर्च को डेटा मिलता है।

धर्म और परंपराएँ: भारतीय परंपरा में इस दौरान सूतक मानने की प्रथा है। इस ग्रहण में सूतक 7 सितंबर को 12:57 PM से शुरू माना जाएगा और 8 सितंबर 2:25 AM (ग्रहण समाप्त) पर खत्म। कई लोग पूजा-पाठ, ध्यान, मंत्रजप या दान करते हैं; गर्भवती महिलाएं और बच्चे अतिरिक्त सावधानी रखते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से खाने-पीने या स्वास्थ्य पर ग्रहण का कोई सीधा असर नहीं है—देखना बिल्कुल सुरक्षित है। धार्मिक परंपराएँ व्यक्तिगत आस्था का विषय हैं, इसलिए परिवार/समुदाय की रीति के अनुसार चलें।

मिथक बनाम तथ्य (छोटी-सी चेकलिस्ट):

  • “ग्रहण देखने से आंख खराब होगी”—गलत। चंद्रग्रहण नंगी आंख से देखना सुरक्षित है।
  • “खाना नहीं खाना चाहिए”—यह धार्मिक मान्यता का हिस्सा है, विज्ञान इसकी जरूरत नहीं बताता।
  • “कपड़े/धातु पर असर”—किसी वस्तु पर भौतिक असर का प्रमाण नहीं।

परिवार के साथ देख रहे हैं? बच्चों को एक आसान-सा प्रयोग कराइए—सफेद कागज पर चांदनी का फर्क महसूस कराएं: आंशिक से टोटल जाते-जाते रोशनी कैसे कम होती है। एक स्केच बनाएं और हर 15–20 मिनट में चांद की स्थिति/आकार नोट करें। इससे बच्चों को समझ आएगा कि पृथ्वी की छाया कैसे आगे बढ़ती है।

शहरवार व्यूइंग नोट्स:

  • दिल्ली-एनसीआर: ऊंची इमारतों की छतें/पार्किंग डेक अच्छे पॉइंट हैं। दक्षिण/पूर्व दिशा में खुला आसमान चुनें।
  • मुंबई-पुणे: समुद्र के पास बादल-नमी ज्यादा रहती है। अगर बादल हों तो शहर के पूर्वी/उत्तरी खुले हिस्सों की ओर शिफ्ट करें।
  • बेंगलुरु-चेन्नई: बीच-बीच में बादल लग सकते हैं, पर लंबे गैप अक्सर मिलते हैं—धैर्य रखें, आंशिक चरण से पहले सेटअप कर लें।
  • कोलकाता-हैदराबाद: ह्यूमिडिटी ज्यादा हो सकती है; लेकिन छतों से भी अच्छा व्यू मिलेगा। स्ट्रीट लाइट्स से दूर रहें।
  • जयपुर-उदयपुर-जैसलमेर: बेहतरीन—कम प्रकाश प्रदूषण, चौड़ा क्षितिज।

क्या यह ग्रहण “खास” है? तीन वजहें—(1) टोटल फेज 82 मिनट लंबा है, जो हाल के वर्षों में उल्लेखनीय है। (2) भारत सहित एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के बड़े हिस्से में सुविधाजनक समय पर दिखेगा। (3) शहरों से भी देखने में मुश्किल नहीं—किसी खास उपकरण की जरूरत नहीं।

क्या-क्या साथ रखें: हल्की जैकेट (रात देर तक खुले में रहेंगे), पानी, स्नैक्स, पावर बैंक, ट्राइपॉड/बाइनोक्युलर, और अगर बच्चे साथ हों तो उनकी पसंद का छोटा गेम/पज़ल ताकि इंतजार में बोर ना हों।

आयोजन और समुदाय: देश के कई शहरों में खगोल क्लब और तारामंडल रात भर के ऑब्ज़र्वेशन सेशन रखते हैं—गाइडेड व्यूइंग, दूरबीन और बच्चों के लिए छोटे-छोटे डेमो। स्थानीय समूहों से पूछेंगे तो एक सामूहिक, सुरक्षित और मज़ेदार अनुभव बन सकता है।

एक छोटी-सी सावधानी: ऊंची छतों/प्राचीन किलों पर भीड़ हो तो रेलिंग से दूर खड़े रहें, ट्राइपॉड और बैग को नियंत्रित रखें। रात में वाहन से दूरस्थ स्थानों पर जाते हैं तो लौटने की सुरक्षित योजना पहले से बनाएं।

आकाश-प्रेमियों के लिए “वॉचलिस्ट”: टोटल फेज में चांद बेहद डार्क दिखे तो आसपास के तारे/ग्रह ज्यादा चमकीले दिखेंगे। अगर शुक्र/बृहस्पति उस रात आसमान में हैं तो फ्रेम में उन्हें साथ लेने की कोशिश करें। साथ ही, टोटैलिटी के दौरान आसमान की बैकग्राउंड ब्राइटनेस गिरती है—लंबे एक्सपोज़र में दूधिया आकाशगंगा की झलक मिल सकती है।

आगे कब? ऐसे लंबे पूर्ण चंद्रग्रहण रोज-रोज नहीं मिलते। आने वाले वर्षों में भी चंद्रग्रहण होंगे, पर इतनी सुविधाजनक दृश्यता और लंबी टोटैलिटी का मेल हर बार नहीं मिलता। इसलिए इस बार की रात को बेकार न जाने दें—समय से सेटअप करें, मौसम पर नज़र रखें और आसमान को काम करने दें।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।

Anuj Poudel

ये ग्रहण तो बहुत बड़ा इवेंट है, ना? मैंने पिछले साल भी देखा था, पर इस बार तो 82 मिनट तक पूरा टोटल? वाह। आंखों से देखने में कोई दिक्कत नहीं, ये तो बहुत अच्छी बात है। मैं तो बस एक फोन से फोटो निकालने वाला हूँ, ट्राइपॉड लेकर नहीं जा रहा।

पर अगर आपके पास नाइट मोड वाला फोन है, तो बिल्कुल फॉर्मल बिना किसी गियर के भी शानदार शॉट्स निकल जाते हैं। मैंने पिछली बार 5x जूम के साथ 1.5s एक्सपोज़र लिया था, और ब्लड मून बिल्कुल रेड दिखा।

अगर आप शहर में रहते हैं, तो बस एक ऊँची छत पर जाइए, और स्ट्रीट लाइट्स के खिलाफ न खड़े हों। ये छोटी-सी बात बहुत फर्क डालती है।

मैं अपने बच्चों के साथ एक स्केचबुक लेकर जा रहा हूँ-हर 20 मिनट में चांद की स्थिति ड्रॉ करेंगे। ये उनके लिए बहुत अच्छा लर्निंग एक्सपीरियंस होगा।

मैंने कुछ लोगों को बताया है-जिन्हें लगता है कि ग्रहण देखने से आंख खराब हो जाएगी। उन्हें समझाया कि ये सिर्फ एक रंग बदलने का खेल है, न कोई रेडिएशन।

और हाँ, बादलों की बात करूँ तो, दिल्ली में अभी तक कोई बारिश का अंदाजा नहीं, लेकिन रात को चेक कर लेना जरूरी है।

मैं अपने गाँव के बच्चों को भी बुला रहा हूँ, ताकि वो भी देख सकें। ये तो सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं, ये एक साझा अनुभव है।

क्या आप लोग भी ऐसा ही कर रहे हैं? या तो बस फोटो ले लेना है?

मैं ये भी जानना चाहता हूँ-क्या कोई ने इस बार दूरबीन से देखने का फैसला किया है? मैंने तो बस बाइनोक्युलर लेने का सोचा है।

अगर आपको लगता है कि ये ग्रहण सामान्य है, तो आप बस एक बार अपने आसमान को देखिए। ये जो लालिमा है, वो पृथ्वी के वायुमंडल की एक अद्भुत फिल्टरिंग है।

और अगर आपके पास एक बच्चा है, तो उसे बताइए कि ये चांद को अपनी छाया से ढकने का नाटक है। ये बात उसे हमेशा याद रहेगी।

Aishwarya George

मैं इस ग्रहण के लिए पूरे हफ्ते से तैयार हूँ। अपने घर की छत पर एक छोटा सा ऑब्ज़र्वेशन स्पॉट बना लिया है-ट्राइपॉड, बाइनोक्युलर, और एक थर्मल कप भी रखा है। रात भर ठंड लग सकती है, इसलिए गर्म पेय जरूरी है।

मैंने अपने घर के बच्चों के लिए एक चांद की डायरी बनाई है-हर चरण के लिए एक पेज। वो खुद नोट्स लिख रहे हैं। ये उनके लिए विज्ञान का पहला असली अनुभव होगा।

अगर कोई शहर में रहता है, तो बस एक बार बादलों की लाइव अपडेट चेक कर लें। अगर बादल नहीं हैं, तो आपका आसमान भी आपको एक नाटक दिखाएगा।

किसी भी धार्मिक मान्यता को सम्मान करें, पर वैज्ञानिक तथ्यों से डरें नहीं। ये ग्रहण एक विज्ञान का जश्न है, न कि किसी अंधविश्वास का।

मैं अपने कॉलेज के छात्रों के साथ एक ऑनलाइन लाइव स्ट्रीम शुरू कर रही हूँ-जो भी देखना चाहे, वो जुड़ सकते हैं। एक साथ देखने से ये अनुभव और भी खास हो जाता है।

Vikky Kumar

इस लेख में बहुत सारी गलतियाँ हैं। टोटलिटी 82 मिनट की नहीं है-ये आंकड़ा गलत है। वास्तविक टोटलिटी 77.6 मिनट है, और ये आंकड़ा NASA के एल्गोरिदम से निकाला गया है।

लेखक ने वायुमंडलीय रिफ्रैक्शन को गलत तरीके से समझाया है। नीली रोशनी का बिखरना नहीं, बल्कि रेले बिखराव है। ये एक बेसिक फिजिक्स गलती है।

और ये बात कि चंद्रग्रहण के दौरान चांद की सतह तेज़ी से ठंडी होती है-ये तो सही है, लेकिन उसका डेटा लेने के लिए लूनर रेंजर या चंद्रयान-2 का इस्तेमाल किया जाता है, न कि आम लोगों का फोन।

इस लेख में वैज्ञानिक जानकारी के साथ धार्मिक अंधविश्वास का मिश्रण है। ये विज्ञान के लिए नुकसानदेह है।

और ये बात कि बच्चों को स्केच बनाने के लिए कहा गया है-ये बहुत अनौपचारिक है। विज्ञान को बच्चों को सिखाने के लिए डेटा और नियमों के साथ किया जाना चाहिए, न कि नाटकीय गतिविधियों से।

यह लेख वैज्ञानिक जागरूकता के बजाय भावनात्मक आकर्षण पर आधारित है। ये गलत दिशा है।

manivannan R

ये ग्रहण तो बहुत ही कूल है! मैंने इसके लिए अपना DSLR तैयार कर लिया है-200mm लेंस लगाया है, ISO 1600, shutter 2s, ब्रैकेटिंग भी कर रहा हूँ।

मेरे दोस्त बोल रहे थे कि फोटो नहीं निकलेगा, लेकिन मैंने एक वीडियो दिखाया था जो मैंने पिछले ग्रहण में लिया था-उनकी आँखें खुल गईं।

मैं जयपुर से जा रहा हूँ, उदयपुर के पास की एक चोटी पर। वहाँ तो बिल्कुल कोई लाइट पॉल्यूशन नहीं।

मैंने अपने बच्चे को एक बाइनोक्युलर दिया है, वो बहुत खुश है। उसने कहा, ‘पापा, चांद अब लाल हो गया!’

मैंने इस बार बहुत सारे फोटो लेने की योजना बनाई है-अगर कोई चाहे तो मैं शेयर कर दूंगा।

मैं नहीं जानता कि ये लेख किसने लिखा, लेकिन बहुत अच्छा है। बस थोड़ा टाइपो है-‘टोटैलिटी’ के बजाय ‘टोटल’ लिखना चाहिए।

Uday Rau

इस रात को बस एक चंद्रग्रहण नहीं, बल्कि एक भारतीय रात का अनुभव मानना चाहिए।

जब चांद लाल हो जाएगा, तो याद आएगा कि हमारे पूर्वज किस तरह आकाश को देखते थे-बिना टेलीस्कोप के, बिना ऐप्स के, बस आँखों से और दिल से।

मैं राजस्थान के एक गाँव में रहता हूँ, जहाँ अभी भी लोग ग्रहण के समय घर से बाहर नहीं निकलते। मैंने उन्हें बताया-‘ये लाल चांद कोई शाप नहीं, ये तो पृथ्वी की छाया का नाच है।’

उन्होंने एक छोटी सी आंख में आंख डाली-और अब वो भी बैठे हैं, चाय के साथ, चांद को देख रहे हैं।

हमारी परंपराएँ अक्सर डर से बनती हैं। आज हम उस डर को ज्ञान से बदल रहे हैं।

अगर आप शहर में हैं, तो भी जानिए-ये चांद आपके ऊपर भी है। बस आसमान को देखिए।

ये लालिमा वो नहीं है जो आप फिल्मों में देखते हैं। ये वास्तविक है। ये आकाश का एक शानदार निशान है।

मैं अपने दोस्तों के साथ एक छोटा सा गाना बना रहा हूँ-‘लाल चांद, बोल रहा है, तुम भी देखो ये नाच।’

कल रात ये ग्रहण हम सबके लिए एक यादगार रात बन जाएगा।

sonu verma

मैं इस ग्रहण के लिए बहुत उत्साहित हूँ। अपने बच्चों के साथ बाहर जा रहा हूँ। उन्हें बहुत डर लगता है रात को बाहर जाने से, लेकिन अब वो बस चांद का इंतज़ार कर रहे हैं।

मैंने उन्हें बताया कि ये चांद लाल क्यों हो रहा है-और उन्होंने बहुत अच्छे से समझ लिया।

मैं बस एक बाइनोक्युलर ले रहा हूँ, और एक गर्म चाय।

मुझे लगता है कि ये रात हमें याद दिलाएगी कि आसमान हमारा है।

अगर आप भी जा रहे हैं, तो बस एक बार आँखें बंद करके सुनिए-रात की चुप्पी में चांद की आवाज़ सुनाई देती है।

Siddharth Varma

मैंने ये ग्रहण देखा था पिछले साल, लेकिन इस बार तो बहुत बड़ा है। मैं बस अपने फोन से फोटो लेने वाला हूँ।

मैंने देखा है कि लोग बहुत ज्यादा टेक्नोलॉजी की बात कर रहे हैं, लेकिन बस एक बार नंगी आंखों से देखो।

ये लाल चांद बहुत खूबसूरत होता है।

chayan segupta

ये ग्रहण देखने का मौका नहीं छोड़ना चाहिए! मैं अपने दोस्तों के साथ एक पिकनिक कर रहा हूँ-चाय, बिस्कुट, और चांद का इंतज़ार।

मैंने अपने बच्चे को एक छोटा सा बैग दिया है-जिसमें एक टॉर्च, एक नोटबुक, और एक चॉकलेट।

मैं बस इतना चाहता हूँ कि वो ये रात याद रखे।

आसमान बहुत खूबसूरत है। बस देखो।

King Singh

मैंने इस ग्रहण के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है। लेकिन अब मैं बस आसमान को देखने वाला हूँ।

मैं नहीं चाहता कि कोई टेक्नोलॉजी मेरे अनुभव को बर्बाद करे।

बस एक बार ऊपर देखो।

और फिर खुद को याद रखो।

Dev pitta

मैं बस एक गाँव का आदमी हूँ। मैंने कभी टेलीस्कोप नहीं देखा।

लेकिन जब मैं चांद को लाल देखूंगा, तो मैं समझ जाऊंगा कि पृथ्वी ने चांद को ढक दिया।

मैं अपने बच्चों के साथ बैठूंगा।

और उन्हें बताऊंगा-‘देखो, ये आकाश हमारा है।’