स्पेन और नॉर्वे ने औपचारिक रूप से की फिलिस्तीन को मान्यता, ईयू और इज़रायल के बीच खाई बढ़ी

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स्पेन और नॉर्वे की फिलिस्तीन को मान्यता: एक महत्वपूर्ण क़दम

स्पेन और नॉर्वे ने हाल ही में फिलिस्तीन को एक संप्रभु राज्य के रूप में औपचारिक मान्यता दी है। यह निर्णय यूरोप और मध्य पूर्व के बीच बढ़ते विवाद के बीच आया है। इज़रायल और संयुक्त राज्य अमेरिका लगातार फिलिस्तीन को मान्यता देने के विरोध में रहे हैं, जब तक कि कोई बातचीत के माध्यम से समाधान नहीं होता।

यूरोपीय संघ का विस्तारित रुख

स्पेन और नॉर्वे का यह क़दम यूरोपीय संघ के अंदर एक बढ़ते रुझान को दर्शाता है, जिसमें सदस्य देश इज़रायल के खिलाफ अधिक स्पष्ट और दृढ़ रुख अपनाने लगे हैं। इन देशों का मानना है कि फिलिस्तीनी लोगों का आत्मनिर्णय और राज्य निर्माण का अधिकार होना चाहिए।

अन्य यूरोपीय देशों पर दबाव

स्पेन और नॉर्वे के इस निर्णय ने अन्य यूरोपीय संघ के सदस्य देशों पर भी दबाव बढ़ा दिया है कि वे भी इसी प्रकार का कदम उठाएं। यह संभावना है कि यदि और भी यूरोपीय देश फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं, तो एक संयुक्त यूरोपीय संघ का रुख उभर सकता है, जिससे इज़रायल पर और भी दबाव बढ़ेगा।

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष

इस विकास की पृष्ठभूमि में इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच तनाव जारी है। हाल ही में इज़रायली सैन्य हवाई हमले गाज़ा पट्टी पर हुए हैं, जिनका जवाब फिलिस्तीनी रॉकेट अटैक्स से दिया गया था। इस तरह के संघर्षों से क्षेत्र में हालात और बिगड़ते जा रहे हैं।

प्रतिक्रिया और आलोचना

इज़रायल और संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्पेन और नॉर्वे के इस निर्णय की कड़ी आलोचना की है। इनका तर्क है कि फिलिस्तीन को स्वीकृति देने से क्षेत्र में शांति स्थापना की प्रक्रिया को नुकसान होगा। वे लगातार कहते आए हैं कि कोई भी स्वीकारोक्ति केवल बातचीत के माध्यम से ही होनी चाहिए।

देशभूगोल क्षेत्रआधिकारिक मान्यता
स्पेनयूरोपफिलिस्तीन
नॉर्वेयूरोपफिलिस्तीन

समर्थन और उम्मीदें

फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला यह कदम इन देशों के फिलिस्तीनी लोगों के प्रति समर्थन का प्रतीक है। उनका उद्देश्य फिलिस्तीनी जनसंख्या के आत्मनिर्णय और उनके अपने राज्य के अधिकार को मज़बूत करना है।

आगे की राह

अब देखने वाली बात यह है कि अन्य यूरोपीय देशों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। यदि और भी देश इसी राह पर चलते हैं तो संभव है कि यह इज़रायल और फिलिस्तीन शांति प्रक्रिया को नया मोड़ दे सकता है।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।

Sandesh Gawade

ये तो बहुत अच्छी बात है! अब तक जो देश फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दे रहे थे, वो सब अपनी नीतियों से बस इज़रायल के खिलाफ आवाज़ बुझा रहे थे। अब यूरोप भी अपनी जिम्मेदारी समझने लगा है।

MANOJ PAWAR

इस फैसले का असली मतलब ये है कि दुनिया अब अपने आप को झूठ बोलने से थक चुकी है। जब तक हम फिलिस्तीनियों को इंसान नहीं मानेंगे, तब तक शांति की बात करना बेकार है।

Pooja Tyagi

अरे भाई! ये तो बहुत बड़ी बात है!! यूरोप ने आखिरकार अपनी नीति बदल ली है! फिलिस्तीन को मान्यता देना कोई राजनीतिक चाल नहीं, बल्कि इंसानियत का फर्ज है!! अब भारत भी क्यों नहीं? ये जो लोग कहते हैं 'बातचीत के बाद'-उनकी बातचीत तो 75 साल से चल रही है और कुछ नहीं हुआ!!

Kulraj Pooni

ये सब राजनीति है। जब तक इज़रायल के साथ अमेरिका का गठबंधन बना रहेगा, तब तक ये सब नाटक ही रहेगा। आप लोग भूल रहे हैं कि इज़रायल के पास नाभिकीय हथियार हैं, और फिलिस्तीन के पास बस एक नारा है। जब तक शक्ति की बात नहीं होगी, तब तक मान्यता का कोई मतलब नहीं।

Hemant Saini

मैं तो सोच रहा था कि अगर यूरोप अपने मूल्यों के अनुसार काम करे, तो ऐसा ही होना चाहिए। न्याय, मानवाधिकार, आत्मनिर्णय-ये सब बातें बस अपने देशों के लिए नहीं, बल्कि दुनिया के लिए हैं। अगर ये निर्णय अन्य देशों को प्रेरित करे, तो ये वाकई एक नया युग शुरू हो सकता है।

Nabamita Das

फिलिस्तीन को मान्यता देना एक शुरुआत है, लेकिन अगर ये मान्यता असली नहीं होगी, तो ये बस एक प्रचार होगा। अब देखना होगा कि क्या इन देशों ने फिलिस्तीन के लिए वित्तीय सहायता, सीमा निर्धारण, और रक्षा के लिए वादे किए हैं या नहीं।

chirag chhatbar

yrr ye sab kya baat hai? israel ko kyun gali de rahe ho? unki taraf se bhi log mar rahe hain! aur hum yahan apne ghar pe bhi khana nahi bana pa rahe, abhi phir palestine ki baat karne lage! bahut badi baat hai!

Aman Sharma

इस तरह की मान्यता का असली उद्देश्य तो ये है कि यूरोप अपने अपराधों का बदला लेना चाहता है-जैसे कि नाज़ियों के खिलाफ जहाँ यहूदियों को मारा गया, अब वो फिलिस्तीनियों को नुकसान पहुँचाकर अपनी आत्मा को शांत करना चाहता है। ये न्याय नहीं, ये बदला है।

sunil kumar

इस फैसले को एक स्ट्रैटेजिक विक्टरी मानो! ये न केवल एक राजनीतिक जीत है, बल्कि एक मोरल विक्टरी है! अब देखो, जब एक देश अपने अधिकारों के लिए लड़ता है, तो दुनिया को उसे सपोर्ट करना ही चाहिए! ये न तो अंधविश्वास है, न ही बातचीत की जरूरत है-ये तो बस इंसानियत का अधिकार है! अब जो भी इसे रोकना चाहता है, वो इतिहास के खिलाफ है!

Arun Kumar

ये सब बकवास है। फिलिस्तीन को मान्यता देने से क्या होगा? वो तो अपने अंदर ही लड़ते रहेंगे। जिन लोगों ने इसे समर्थन दिया, वो खुद अपने देशों में अपराध को रोक नहीं पाए, फिर दूसरे देशों के लिए न्याय कैसे करेंगे? ये सब बाहरी नाटक है।

Snehal Patil

बस इतना ही। अब देखो, इज़रायल क्या करता है।