बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन: सरकारी नौकरी में कोटा सिस्टम की बहाली पर हंगामा

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कौन सा विवाद: कोटा सिस्टम का विरोध

बांग्लादेश में छात्रों का विरोध-प्रदर्शन उस समय हिंसक हो गया जब सरकार ने सरकारी नौकरियों में विवादास्पद कोटा सिस्टम फिर से बहाल कर दिया। ज्ञात हो कि 2018 में इस कोटा सिस्टम को छात्रों के व्यापक विरोध के चलते समाप्त कर दिया गया था। यह कोटा सिस्टम 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों की संतानों के लिए नौकरियों का 30 प्रतिशत आरक्षण देता है।

विरोध की शुरुआत और प्रसार

रविवार की रात से शुरू हुए प्रदर्शन सोमवार को उग्र रूप धारण कर चुके थे। ढाका यूनिवर्सिटी समेत कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के परिसर आंदोलन का प्रमुख केन्द्र बने हुए हैं। चूंकि छात्रों का मानना है कि यह कोटा सिस्टम अन्य छात्रों के अवसरों को सीमित कर रहा है, इसलिए वे इसका तीव्र विरोध कर रहे हैं।

सोमवार को प्रदर्शनकारियों और सरकार समर्थित छात्र संगठन बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के बीच झड़पें हुईं, जिससे कई छात्र घायल हो गए। बीसीएल के सदस्य, जिनमें से कई विश्वविद्यालय बाहरी बताया जा रहा है, प्रदर्शनकारियों पर हमला कर रहे हैं।

पुलिस बल का प्रयोग और इसके परिणाम

स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस पर आंसू गैस और रबर की गोलियों का उपयोग करने का आरोप लगाया जा रहा है। इस बर्बरतापूर्ण कार्रवाई से हिंसक टकराव और बढ़ गए हैं और रिपोर्ट्स के मुताबिक कम से कम छह छात्रों की मौत हो चुकी है, जबकि 100 से अधिक छात्र घायल हो गए हैं।

देशव्यापी विस्तार

देशव्यापी विस्तार

इस विरोध का प्रसार केवल राजधानी ढाका तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में फैल गया है। दर्जनों विश्वविद्यालयों में छात्र अपने छात्रावासों से निकलकर कोटा सिस्टम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया

प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस मुद्दे पर 'रजाकार' शब्द का इस्तेमाल किया, जो 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के सहयोगियों के लिए उपयोग होता था। यह टिप्पणी छात्रों को अपमानित करने वाली लगी और उनकी नाराजगी को और बढ़ा दिया।

सरकारी भूमिका और अदालत का हस्तक्षेप

सरकारी भूमिका और अदालत का हस्तक्षेप

सरकार ने छात्रों के इस दृष्टांत पर सवाल उठाया है, और कहा है कि उन्हें बीसीएल ने भड़काया है। सुप्रीम कोर्ट ने कोटा सिस्टम की बहाली को चार हफ्तों के लिए रोक दिया है और छात्रों से कक्षाओं में लौटने को कहा है, लेकिन बावजूद इसके विरोध प्रदर्शन जारी हैं।

छात्रों की आशंका और भविष्य की राह

छात्रों को यह भी शंका है कि कोटा लाभार्थियों की सूची विश्वसनीय नहीं है और इसमें धांधली हो सकती है। छात्रों की प्रमुख मांग कोटा सिस्टम का पूर्णतः निष्कासन है। स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि शासन और छात्र कैसे समाधान की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।

इस मुद्दे ने केवल बांग्लादेश के शिक्षा प्रतिष्ठानों को ही नहीं, बल्कि पूरे सामाजिक और राजनीतिक तंत्र को हिला कर रख दिया है। देखना यह है कि आगे किस तरह से सरकार और छात्र संगठन इस संकट को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।

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Snehal Patil

ये कोटा सिस्टम तो बस एक झूठा ढोंग है! 😤 जिनके पापा-मामा ने 1971 में लड़ाई लड़ी, उनकी बेटी आज फोन पर आरक्षण की मांग कर रही है? 🤦‍♀️

Vikash Yadav

अरे भाई, ये सब तो बस राजनीति का खेल है! 😎 छात्र तो बस अपना भविष्य चाहते हैं, और सरकार तो अपने वोट बैंक को बचाने में लगी है। जिंदगी में इतना झगड़ा क्यों? 🤷‍♂️

Anuj Poudel

इस मुद्दे को देखने के लिए दोनों तरफ के दृष्टिकोण को समझना जरूरी है... लेकिन अगर एक तरफ आरक्षण है तो दूसरी तरफ योग्यता का सम्मान भी होना चाहिए। ये संतुलन बनाना जरूरी है।

Aishwarya George

कोटा सिस्टम की बहाली के पीछे एक ऐतिहासिक भावना है, लेकिन आज के युग में यह अनुपयुक्त है। योग्यता, प्रदर्शन और समान अवसर यही आधार होने चाहिए। अगर कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों के बल पर नौकरी चाहता है, तो वह शायद नौकरी के लिए नहीं, बल्कि अपनी आत्मा के लिए लड़ रहा है।

Vikky Kumar

सरकार ने बिल्कुल सही किया। ये छात्र अपने भाग्य के लिए नहीं, बल्कि अपनी आलस्य के लिए विरोध कर रहे हैं। जिन्होंने अपने पूर्वजों के बल पर नौकरी का दावा किया, उन्हें रजाकार कहना भी बहुत हल्का है।

Uday Rau

मैं भारत से हूँ, लेकिन मैं बांग्लादेश के छात्रों के साथ हूँ। ये सब बस एक न्याय की मांग है। अगर आपके पापा ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, तो उनका नाम याद रखें, उनकी तस्वीर लगाएं, लेकिन उनके नाम पर आरक्षण नहीं। ये इतिहास का सम्मान है, न कि नौकरी का अधिकार।

sonu verma

मुझे लगता है कि ये सब बहुत बुरा हो रहा है... छात्र तो बस अपना भविष्य चाहते हैं... और सरकार भी उनकी बात सुन ले... 😔