धनुष की 50वीं फिल्म: रायन मूवी रिव्यू - गैंगस्टर ड्रामा में धमाकेदार अभिनय

मिर्ची समाचार

धनुष की 50वीं फिल्म: रायन मूवी रिव्यू

धनुष की 50वीं फिल्म 'रायन' एक शानदार गैंगस्टर रिवेंज ड्रामा है, जिसे खुद धनुष ने लिखा और निर्देशित किया है। इस फिल्म में वह रायन की भूमिका निभा रहे हैं, जो अपने माता-पिता के जाने के बाद अपने दो भाइयों - मणिक्कम (कलिदास जयराम) और मुथु (सुंद्दीप किशन) और बहन दुर्गा (दुशारा विजय) की देखभाल करता है।

कहानी तब मोड़ लेती है जब तमिलनाडु के छोटे से कस्बे में दो गैंगस्टर - शेखर (एसजे सूर्या) और सरवनन के बीच जंग छिड़ जाती है। इस संघर्ष में शहर का नया पुलिस कमिश्नर (प्रकाश राज) और अधिक जटिलता लाते हैं, जिससे रायन की भी इसमें भागीदारी बढ़ जाती है। फिल्म में बनाए गए सर्वश्रेष्ठ अभिनय के किरदारों में कलिदास, सुंद्दीप, और दुशारा को मुख्य भूमिकाएं दी गई हैं।

कहानी की गहराई और अदाकारी

रायन की कहानी बहुत ही सोच-समझकर लिखी गई है, जिसमें भावनात्मक तत्वों के साथ-साथ एक्शन और सस्पेंस का भी भरपूर समावेश है। फिल्म की शुरुआत में कुछ रूटीन राइटिंग नजर आती है, लेकिन पर्दे पर उतारे गए सीन बेहद प्रभावशाली हैं।

इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है इसके मुख्य पात्रों का प्रभावशाली अभिनय। धनुष ने हमेशा की तरह अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीता है। कलिदास जयराम और सुंद्दीप किशन ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। दुशारा विजय जिन्होंने दुर्गा का किरदार निभाया, ने अपनी अदाकारी से अपनी छाप छोड़ी है।

दूसरा हाफ: ट्विस्ट्स और टर्न्स

जहां पहले हाफ में कहानी की नींव रखी जाती है, वहीं दूसरा हाफ सस्पेंस और ट्विस्ट्स से भरपूर है। फिल्म का दूसरा हाफ और भी रोचक होता है जब कहानी में अप्रत्याशित मोड़ आते हैं।

धनुष ने निर्देशन में भी बेहतरीन काम किया है। उनकी कहानी कहने की शैली और किरदारों के विकास ने दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

फिल्म के दृश्यों में विविधता और दृश्य-श्रव्य प्रभाव ने इसे और भी आकर्षक बनाया है। फिल्म के अंत में दिए गए संकेत से यह जाहिर होता है कि इसकी कहानी को आगे बढ़ाने की भी सम्भावना है।

फिल्म का सेट-अप और सिनेमैटोग्राफी

फिल्म का सेट-अप और सिनेमैटोग्राफी भी बेहद प्रभावशाली हैं। कस्बे के छोटे-छोटे विवरण, लोक जीवन की झलकियां, और गैंगस्टर जीवन की कठिनाइयों को बड़े ही प्रभावशाली और वास्तविक तरीके से दर्शाया गया है।

फिल्म में संगीत और बैकग्राउंड स्कोर भी फिल्म की भावनात्मक गहराई को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुए हैं। जिस तरह से दृश्यों के साथ संगीत का मेल बैठता है, वह दर्शकों को कहानी के साथ जुड़ा रहने में मदद करता है।

संभव सीक्वल की संभावना

‘रायन’ ने एक मजबूत मंच तैयार किया है जो इसकी कहानी को आगे बढ़ाने का संकेत दे सकता है। यह फिल्म देखने लायक है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो गैंगस्टर ड्रामा और एक्शन को पसंद करते हैं। भले ही यह एक ए-सर्टिफाइड फिल्म है, लेकिन इसके रोमांचक कहानी और दमदार अभिनय दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में सक्षम हैं।

धनुष की 50वीं फिल्म के रूप में ‘रायन’ एक यादगार फिल्म है जो उनके करियर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखेगी।

द्वारा लिखित Shiva Parikipandla

मैं एक अनुभवी समाचार लेखिका हूं और रोज़ाना भारत से संबंधित समाचार विषयों पर लिखना पसंद करती हूं। मेरा उद्देश्य लोगों तक सटीक और महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है।

Vikash Yadav

ये फिल्म तो धनुष का अपने करियर का सबसे जबरदस्त काम है! पहले हाफ में थोड़ा सुस्त लगा, लेकिन दूसरे हाफ में तो मैं बिल्कुल फंस गया। रायन का किरदार देखकर लगा जैसे उसकी आत्मा मेरे दिमाग में बैठ गई हो।
कलिदास का अभिनय तो बस ओवरड्राइव हुआ, और सुंद्दीप की बात तो नहीं करनी पड़ी - वो तो बिना बोले ही सब कुछ बयां कर देता है।

Anuj Poudel

इस फिल्म में किरदारों के विकास को बहुत ध्यान से देखा गया है... रायन का ट्रांसफॉर्मेशन बिल्कुल अनुभवजन्य लगता है। और फिल्म का सेटिंग - कस्बे का वातावरण, लोगों की बातचीत, गलियों की आवाज़ें - सब कुछ बेहद वास्तविक है।

Aishwarya George

फिल्म का सिनेमैटोग्राफी और संगीत बेहद समर्पित तरीके से काम कर रहा है। हर दृश्य के साथ बैकग्राउंड स्कोर का मेल बिल्कुल सही है - न ज्यादा बोलता है, न बहुत कम। धनुष ने निर्देशन में भी एक नए स्तर की उपलब्धि हासिल की है।

Vikky Kumar

यह फिल्म एक अत्यधिक अतिशयोक्तिपूर्ण और अतिरिक्त भावनात्मक निर्माण है, जिसमें वास्तविकता का कोई स्थान नहीं है। रायन के अभिनय में बहुत अधिक नाटकीयता है, और कहानी के ट्विस्ट्स बिल्कुल अप्राकृतिक लगते हैं। यह एक बाजार के लिए बनाई गई फिल्म है, न कि कला के लिए।

manivannan R

brooo ye film ka vibe toh pure 10/10!! dhunush ne ekdum raw, real, no-filter kiya hai. kuch scenes toh jaise kisi ne meri zindagi ki camera se capture kar li ho. aur background score? jaise dil ke saare beats ko alag se record kiya ho!!

Uday Rau

इस फिल्म ने तमिलनाडु के छोटे कस्बे की जिंदगी को इतना सच्चाई से दर्शाया कि मैंने अपने गाँव की यादें ताजा कर लीं। गैंगस्टर ड्रामा के बाहर भी यह फिल्म एक सामाजिक संदेश लेकर आती है - बहन का प्यार, भाई की जिम्मेदारी, और गाँव का अपना नियम।

sonu verma

मुझे लगता है कि ये फिल्म बहुत सारे लोगों के लिए बहुत ज्यादा भावनात्मक होगी... खासकर जिन्होंने अपने परिवार को खोया है। धनुष ने बस एक किरदार नहीं बनाया, बल्कि एक अनुभव दिया है।

Siddharth Varma

क्या रायन के पिता की मौत का कोई फ्लैशबैक था? मैंने नहीं देखा, लेकिन उसके बाद के दृश्यों में उसका दर्द बहुत ज्यादा झलक रहा था। क्या ये इरादतन छोड़ दिया गया था?

chayan segupta

ये फिल्म देखकर लगा जैसे मैं अपने दोस्त के घर बैठा हूँ और वो मुझे अपनी ज़िंदगी की कहानी सुना रहा है। बहुत अच्छा लगा, बहुत बहुत बधाई!

King Singh

धनुष ने अच्छा काम किया। फिल्म अच्छी है। अभिनय अच्छा है। संगीत अच्छा है। बस इतना ही।

Dev pitta

मैंने फिल्म देखी और बस एक बात समझ आई - अगर तुम्हारे पास परिवार है, तो उन्हें ज़रूर बुलाओ। इस फिल्म ने मुझे याद दिलाया कि घर क्या होता है।

Vikash Yadav

अरे वाह! तुमने जो कहा उसके बाद मैं फिर से देखने लगा - वाकई, रायन के पिता की मौत का कोई सीधा फ्लैशबैक नहीं है, लेकिन उसके बाद के सभी दृश्यों में उसकी छाप है... जैसे खाली जगह हो जिसे दर्शक भर दे। धनुष ने ये बहुत बुद्धिमानी से किया है।